गणपति हवन विधि - गणेश नामवली - / Ganesh Namvli - By Shobhana Chourey
गणपति हवन विधि एक सरल हवन विधान प्रस्तुत है जो आप आसानी से स्वयम कर सकते हैं । ऊं अग्नये नमः .........७ बार इस मन्त्र का जाप करें तथा आग जला लें ऊं गुरुभ्यो नमः ..... २१ बार इस मन्त्र का जाप करें । ऊं अग्नये स्वाहा ...... ७ आहुति (अग्नि मे डालें) ऊं गं स्वाहा ..... १ बार ऊं भैरवाय स्वाहा ..... ११ बार ऊं गुरुभ्यो नमः स्वाहा .....१६ बार ऊं गं गणपतये स्वाहा ..... १०८ बार अन्त में कहें कि गणपति भगवान की कृपा मुझे प्राप्त हो.... गलतियों के लिये क्षमा मांगे..... तीन बार पानी छिडककर शांति शांति शांति ऊं कहें.....
गणेश पूजन (सरलतम विधि ) लम्बी
सूंड, बड़ी आँखें ,बड़े कान ,सुनहरा सिन्दूरी वर्ण यह ध्यान करते ही प्रथम
पूज्य श्री गणेश जी का पवित्र स्वरुप हमारे सामने आ जाता है | सुखी व सफल
जीवन के इरादों से आगे बढऩे के लिए बुद्धिदाता भगवान श्री गणेश के नाम
स्मरण से ही शुरुआत शुभ मानी जाती है। जीवन में प्रसन्नता और हर छेत्र में
सफलता प्राप्त करने हतु श्री गजानन महाराज के पूजन की सरलतम विधि विद्वान
पंडित जी द्वारा बताई गयी है ,जो की आपके लिए प्रस्तुत है -प्रातः काल
शुद्ध होकर गणेश जी के सम्मुख बैठ कर ध्यान करें और पुष्प, रोली ,अछत आदि
चीजों से पूजन करें और विशेष रूप से सिन्दूर चढ़ाएं तथा दूर्बा दल(११या २१
दूब का अंकुर )समर्पित करें|यदि संभव हो तो फल और मीठा चढ़ाएं (मीठे में
गणेश जी को मूंग के लड्डू प्रिय हैं ) | अगरबत्ती और दीप जलाएं और नीचे लिखे सरल मंत्रों का मन ही मन 11, 21 या अधिक बार जप करें :- ॐ चतुराय नम: | ॐ गजाननाय नम: | ॐ विघ्रराजाय नम: | ॐ प्रसन्नात्मने नम: | पूजा और मंत्र जप के बाद श्री गणेश आरती कर सफलता व समृद्धि की कामना करें। सामान्य पूजन पूजन
सामग्री (सामान्य पूजन के लिए ) -शुद्ध
जल,गंगाजल,सिन्दूर,रोली,रक्षा,कपूर,घी,दही,दूब,चीनी,पुष्प,पान,सुपारी,रूई,प्रसाद
(लड्डू गणेश जी को बहुत प्रिय है) | विधि- गणेश जी की मूर्ती सामने
रखकर और श्रद्धा पूर्वक उस पर पुष्प छोड़े यदि मूर्ती न हो तो सुपारी पर
मौली लपेटकर चावल पर स्थापित करें और आवाहन मंत्र पढकर अक्षत डालें |
वक्रतुण्ड महाकाय सूर्यकोटि समप्रभ | निर्विघ्नं कुरु मे देव सर्व कार्येषु सर्वदा | प्रार्थनां समर्पयामि | आवाहनं न जानामि न जानामि विसर्जनं | पूजाविधिं न जानामि क्षमस्व पुरुषोत्तम | क्षमापनं समर्पयामि | ॐ सिद्धि विनायकाय नमः . पुनरागमनाय च ||
वृहद पूजन विधि पूजन
सामग्री (वृहद् पूजन के लिए ) -शुद्ध
जल,दूध,दही,शहद,घी,चीनी,पंचामृत,वस्त्र,जनेऊ,मधुपर्क,सुगंध,लाल
चन्दन,रोली,सिन्दूर,अक्षत(चावल),फूल,माला,बेलपत्र,दूब,शमीपत्र,गुलाल,आभूषण,सुगन्धित
तेल,धूपबत्ती,दीपक,प्रसाद,फल,गंगाजल,पान,सुपारी,रूई,कपूर | विधि- गणेश
जी की मूर्ती सामने रखकर और श्रद्धा पूर्वक उस पर पुष्प छोड़े यदि मूर्ती न
हो तो सुपारी पर मौली लपेटकर चावल पर स्थापित करें -
भाद्रपद
माह की चतुर्थी को मनाया जाने वाला गणेश चतुर्थी का त्योहार पूरे भारत में
जोर-शोर से मनाया जाता है। हर भक्तगण अपने-अपने तरीके से भगवान गणेश के
जन्मदिन को मनाता है। महाराष्ट्र में गणेश चतुर्थी से लेकर अनंत चतुर्दशी
तक गणेशोत्सव मनाया जाता है। पूरा देश मंगलमूर्ति भगवान गणेश को अपने घर
लाने के तैयारियों बड़े जोर-शोर से करता है। कहते हैं कि इस दिन भगवान गणेश
धरती पर आते हैं और अपने भक्तों के कष्टों को हर लेते हैं। बुद्धिदाता,
विघ्नहर्ता जैसे 108 नाम वाले भगवान गणेश के हर एक नाम में अपने भक्तों का
उद्धार छुपा हुआ है। आधुनिक समय में अधिकतर हर व्यक्ति किसी ना किसी
परेशानी से परेशान रहता है। इस परेशानी को बहुत हद तक कम किया जा सकता है
यदि रोज सुबह के समय गणेश जी के 108 नाम लिए जाएँ। गणेश जी को वैसे भी
विघ्नहर्त्ता कहा गया है। गणेश जी के 108 नाम इस प्रकार हैं:- गणेश नामवली-108
1. बालगणपति: सबसे प्रिय बालक 2. भालचन्द्र: जिसके मस्तक पर चंद्रमा हो 3. बुद्धिनाथ: बुद्धि के भगवान 4. धूम्रवर्ण: धुंए को उड़ाने वाला 5. एकाक्षर: एकल अक्षर 6. एकदन्त: एक दांत वाले 7. गजकर्ण: हाथी की तरह आंखें वाला 8. गजानन: हाथी के मुँख वाले भगवान 9. गजनान: हाथी के मुख वाले भगवान 10. गजवक्र: हाथी की सूंड वाला 11. गजवक्त्र: जिसका हाथी की तरह मुँह है 12. गणाध्यक्ष: सभी जणों का मालिक 13. गणपति: सभी गणों के मालिक 14. गौरीसुत: माता गौरी का बेटा 15. लम्बकर्ण: बड़े कान वाले देव 16. लम्बोदर: बड़े पेट वाले 17. महाबल: अत्यधिक बलशाली वाले प्रभु 18. महागणपति: देवातिदेव 19. महेश्वर: सारे ब्रह्मांड के भगवान 20. मंगलमूर्त्ति: सभी शुभ कार्य के देव 21. मूषकवाहन: जिसका सारथी मूषक है 22. निदीश्वरम: धन और निधि के दाता 23. प्रथमेश्वर: सब के बीच प्रथम आने वाला 24. शूपकर्ण: बड़े कान वाले देव 25. शुभम: सभी शुभ कार्यों के प्रभु 26. सिद्धिदाता: इच्छाओं और अवसरों के स्वामी 27. सिद्दिविनायक: सफलता के स्वामी 28. सुरेश्वरम: देवों के देव 29. वक्रतुण्ड: घुमावदार सूंड 30. अखूरथ: जिसका सारथी मूषक है 31. अलम्पता: अनन्त देव 32. अमित: अतुलनीय प्रभु 33. अनन्तचिदरुपम: अनंत और व्यक्ति चेतना 34. अवनीश: पूरे विश्व के प्रभु 35. अविघ्न: बाधाओं को हरने वाले 36. भीम: विशाल 37. भूपति: धरती के मालिक 38. भुवनपति: देवों के देव 39. बुद्धिप्रिय: ज्ञान के दाता 40. बुद्धिविधाता: बुद्धि के मालिक 41. चतुर्भुज: चार भुजाओं वाले 42. देवादेव: सभी भगवान में सर्वोपरी 43. देवांतकनाशकारी: बुराइयों और असुरों के विनाशक 44. देवव्रत: सबकी तपस्या स्वीकार करने वाले 45. देवेन्द्राशिक: सभी देवताओं की रक्षा करने वाले 46. धार्मिक: दान देने वाला 47. दूर्जा: अपराजित देव 48. द्वैमातुर: दो माताओं वाले 49. एकदंष्ट्र: एक दांत वाले 50. ईशानपुत्र: भगवान शिव के बेटे 51. गदाधर: जिसका हथियार गदा है 52. गणाध्यक्षिण: सभी पिंडों के नेता 53. गुणिन: जो सभी गुणों क ज्ञानी 54. हरिद्र: स्वर्ण के रंग वाला 55. हेरम्ब: माँ का प्रिय पुत्र 56. कपिल: पीले भूरे रंग वाला 57. कवीश: कवियों के स्वामी 58. कीर्त्ति: यश के स्वामी 59. कृपाकर: कृपा करने वाले 60. कृष्णपिंगाश: पीली भूरी आंखवाले 61. क्षेमंकरी: माफी प्रदान करने वाला 62. क्षिप्रा: आराधना के योग्य 63. मनोमय: दिल जीतने वाले 64. मृत्युंजय: मौत को हरने वाले 65. मूढ़ाकरम: जिन्में खुशी का वास होता है 66. मुक्तिदायी: शाश्वत आनंद के दाता 67. नादप्रतिष्ठित: जिसे संगीत से प्यार हो 68. नमस्थेतु: सभी बुराइयों और पापों पर विजय प्राप्त करने वाले 69. नन्दन: भगवान शिव का बेटा 70. सिद्धांथ: सफलता और उपलब्धियों की गुरु 71. पीताम्बर: पीले वस्त्र धारण करने वाला 72. प्रमोद: आनंद 73. पुरुष: अद्भुत व्यक्तित्व 74. रक्त: लाल रंग के शरीर वाला 75. रुद्रप्रिय: भगवान शिव के चहीते 76. सर्वदेवात्मन: सभी स्वर्गीय प्रसाद के स्वीकार्ता 77. सर्वसिद्धांत: कौशल और बुद्धि के दाता 78. सर्वात्मन: ब्रह्मांड की रक्षा करने वाला 79. ओमकार: ओम के आकार वाला 80. शशिवर्णम: जिसका रंग चंद्रमा को भाता हो 81. शुभगुणकानन: जो सभी गुण के गुरु हैं 82. श्वेता: जो सफेद रंग के रूप में शुद्ध है 83. सिद्धिप्रिय: इच्छापूर्ति वाले 84. स्कन्दपूर्वज: भगवान कार्तिकेय के भाई 85. सुमुख: शुभ मुख वाले 86. स्वरुप: सौंदर्य के प्रेमी 87. तरुण: जिसकी कोई आयु न हो 88. उद्दण्ड: शरारती 89. उमापुत्र: पार्वती के बेटे 90. वरगणपति: अवसरों के स्वामी 91. वरप्रद: इच्छाओं और अवसरों के अनुदाता 92. वरदविनायक: सफलता के स्वामी 93. वीरगणपति: वीर प्रभु 94. विद्यावारिधि: बुद्धि की देव 95. विघ्नहर: बाधाओं को दूर करने वाले 96. विघ्नहर्त्ता: बुद्धि की देव 97. विघ्नविनाशन: बाधाओं का अंत करने वाले 98. विघ्नराज: सभी बाधाओं के मालिक 99. विघ्नराजेन्द्र: सभी बाधाओं के भगवान 100. विघ्नविनाशाय: सभी बाधाओं का नाश करने वाला 101. विघ्नेश्वर: सभी बाधाओं के हरने वाले भगवान 102. विकट: अत्यंत विशाल 103. विनायक: सब का भगवान 104. विश्वमुख: ब्रह्मांड के गुरु 105. विश्वराजा: संसार के स्वामी 105. यज्ञकाय: सभी पवित्र और बलि को स्वीकार करने वाला 106. यशस्कर: प्रसिद्धि और भाग्य के स्वामी 107. यशस्विन: सबसे प्यारे और लोकप्रिय देव 108. योगाधिप: ध्यान के प्रभु
हर मुश्किल की काट है शिव अभिषेक धार्मिक मान्यता है कि सागर मंथन से
निकले विष की जलन को शांत करने के लिए भगवान शंकर ने गंगा को अपनी जटाओं
में स्थान दिया। इसी धारणा को आगे बढ़ाते हुए भगवान शंकराचार्य ने
ज्योर्तिलिंग रामेश्वरम पर गंगा जल चढ़ाकर जगत को शिव के जलाभिषेक का महत्व
बताया। शिवलिंग का जल से अभिषेक कलह को जीवन से दूर कर सुख और शांति देने
वाली मानी गई है। इसलिए शास्त्रों में मनोरथ पूर्ति व संकट मुक्ति के लिए
अलग-अलग तरह की धारा से शिव का अभिषेक करना शुभ बताया गया है। इन धाराओं को
अर्पण करते समय महामृत्युंज मंत्र, गायत्री मंत्र, रुद्र मंत्र, पंचाक्षरी
मंत्र, षडाक्षरी मंत्र जरुर बोलना चाहिए। जानते हैं अलग-अलग धाराओं से शिव
अभिषेक का फल - - जब किसी का मन बेचैन हो, निराशा से भरा हो, परिवार में
कलह हो रहा हो, अनचाहे दु:ख और कष्ट मिल रहे हो तब शिव लिंग पर दूध की धारा
चढ़ाना सबसे अच्छा उपाय है। इसमें भी शिव मंत्रों का उच्चारण करते रहना
चाहिए। - वंश की वृद्धि के लिए शिवलिंग पर शिव सहस्त्रनाम बोलकर घी की धारा
अर्पित करें। - शिव पर जलधारा से अभिषेक मन की शांति के लिए श्रेष्ठ मानी
गई है। - भौतिक सुखों को पाने के लिए इत्र की धारा से शिवलिंग का अभिषेक
करें। - बीमारियों से छुटकारे के लिए शहद की धारा से शिव पूजा करें। -
गन्ने के रस की धारा से अभिषेक करने पर हर सुख और आनंद मिलता है। - सभी
धाराओं से श्रेष्ठ है गंगाजल की धारा। शिव को गंगाधर कहा जाता है। शिव को
गंगा की धार बहुत प्रिय है। गंगा जल से शिव अभिषेक करने पर चारों पुरुषार्थ
की प्राप्ति होती है। इससे अभिषेक करते समय महामृत्युंजय मन्त्र जरुर
बोलना चाहिए। सोमवार, प्रदोष या चतुर्दशी तिथि को शिव का ऐसी धाराओं से
अभिषेक व पूजा से भगवान शिव के साथ शक्ति, श्री गणेश और धनलक्ष्मी का
आशीर्वाद भी मिलता है। ग्रह शांति उपाय छोटे उपाय बड़ी कामयाबी आप
दिन-रात अपने कमजोर ग्रह से होने वाले नुकसान को लेकर परेशान रहते हैं।
लेकिन, आप छोटे-छोटे उपाय आजमाकर अपने कमजोर ग्रह को मजबूत बना सकते हैं
गुरु ग्रह शांति उपाय 1.पीला वस्त्र धारण करें। 2.बेसन की सब्जी, मिठाई,
चना दाल, पपीता, आम, केला इत्यादि का सेवन करें।3.मंदिर के वृद्ध पुजारी या
शिक्षक को पीला वस्त्र, धार्मिक पुस्तक या पीले खाद्य पदार्थ दान
करें।4.बादाम या नारियल पीले कपड़े में बांधकर नदी/नहर में प्रवाहित
करें।5.गुरुवार के दिन पीपल के पेड़ में बृहस्पति के बीज मंत्र जपते हुए जल
अर्पण करें।6.केसर या हल्दी का तिलक लगाएं।7.अपने घर में पीले पुष्प गमलों
में लगाएं।8.विष्णु की पूजा आराधना करें।9.शिक्षक, ब्राह्मण, साधु,
विद्वान, पति, संतान का दिल न दु:खाएं।10.बृहस्पतिवार के दिन फलाहार वृक्ष
लगाएं और फलों का दान करें।11.हल्दी की गांठ या केला-जड़ को पीले कपड़े में
बांह पर बांधें। शुक्र ग्रह शांति उपाय 1.शुक्र, भोग-विलास, सांसारिक सुख,
प्रेम, मनोरंजक, व्यवसाय, पत्नी का कारक ग्रह है। प्रमेह, मूत्राशय, चर्म,
सेक्स संबंधी बीमारी से इसका सीधा संबंध है।2.कन्या का शुक्र (नीच) का
होता है।3.अपने भोजन का हिस्सा झूठा करने से पहले निकालकर गाय को
दें।4.सफेद वस्त्र का प्रयोग करें।5.चांदी, चावल, दूध, दही, श्वेत चंदन,
सफेद वस्त्र तथा सुगंधित पदार्थ किसी पुजारी की पत्नी को दान करें।6.छोटी
इलायची का सेवन करें।7.घर में तुलसी का पौधा लगाएं।8.श्वेत चंदन का तिलक
करें।9.पानी में चंदन मिलाकर स्नान करें।10.शुक्रवार के दिन गाय/गौशाला में
हरा चारा दें।11.चांदी का टुकड़ा या चंदन की लकड़ी नदी या नहर में
प्रवाहित करें।12.सुगंधित पदार्थ का इस्तेमाल करें। शनि ग्रह शांति उपाय
1.नीले रंग के कपड़ों का अधिक प्रयोग करें।2.शनिवार के दिन अपंग, नेत्रहीन,
कोढ़ी, अत्यंत वृद्ध या गली के कुत्ताें को खाने की सामग्री दें।3.पीपल या
शम्मी पेड़ के नीचे शनिवार संध्याकाल में तिल का दीपक जलाएं।4.समर्थ हैं
तो काली भैंस, जूता, काला वस्त्र, तिल, उड़द का दान सफाई करने वालों को
दें।5.सरसों तेल की मालिश करें व आंखों में सुरमा लगाएं।6.पानी में सौंफ,
खिल्ला या लोबान मिलाकर स्नान करें।7.लोहे का छल्ला मध्यम अंगुली में
शनिवार से धारण करें।8.लोहे की कटोरी में सरसों तेल में अपना चेहरा देखकर
दान करें।9.घर के या पड़ोस के बुजुर्गो की सेवा कर उनका आशीर्वाद प्राप्त
करें।10.शम्मी की जड़ काले कपड़े में बांह में बांधें। राहु ग्रह शांति
उपाय 1.बहते हुए पानी में कोयला, लोहा या नारियल प्रवाहित करें।2.सफाई
कर्मचारी को लाल मसूर दाल तथा रुपये दान करें।3.चादी के बने सामान/आभूषण का
प्रयोग करें।4.गरीब की लड़की के विवाह में आर्थिक मदद करें।5.तम्बाकू का
सेवन नहीं करें।6.घर में अस्त्र-शस्त्र न रखें।7.नीला वस्त्र,
इलेक्ट्रिक/इलेक्ट्रानिक उपकरण या स्टील के बर्तन उपहार में न लें।8.घर में
कुत्ता न पालें।9.दक्षिणमुखी द्वार वाले घर में न रहें।10.गरीब व्यक्ति को
सरसों, मूली, नीले रंग का कपड़ा दान करें।11.सास-ससुर की सेवा कर उनका
आशीर्वाद लें। केतु ग्रह शांति उपाय 1. एक से अधिक रंग के कुत्तों या गाय
को खाने का सामग्री दें।2.कोयले के आठ टुकड़े बहते पानी में प्रवाहित
करें।3.नेत्रहीन, कोढ़ी, अपंग को एक से अधिक रंग का कपड़ा दान करें।4.भगवान
गणेश/बजरंग बली की पूजा आराधना करें।5.काले या सफेद तिल को काले वस्त्र
में बांधकर बहते पानी में प्रवाहित करें।6.पानी में लोबान मिलाकर स्नान
करें।7.कुश का बना आसन पूजा के दौरान प्रयोग करें।8 काले रंग का रुमाल अपने
छोटे भाई या मित्र को उपहार में दें।9.नींबू, केला या चांदी का बना आभूषण
दान करें। किस दिन करें किस देव की पूजा हिन्दू धर्म शास्त्रों में मानव
जीवन के सुखों, कामनाओं की पूर्ति या पीड़ा मुक्ति या ग्रह दोषों की शांति
के लिए सप्ताह के हर दिन अलग-अलग देवी-देवताओं की आराधना का महत्व बताया
गया है। इनमें खासतौर पर शिव पुराण में हर दिन अलग-अलग देवता की पूजा और
उसका फल बताया गया है। जानते हैं किस दिन किस देवता की उपासना मनचाहे फल
देती है -रविवार - सूर्य पूजा, ब्राह्मणों को भोजन, शारीरिक रोगों से
मुक्ति सोमवार - लक्ष्मी की पूजा, ब्राह्मणों को पत्नी सहित घी से पका हुआ
भोजन, धन लाभ मंगलवार - काली पूजा, उड़द, मूंग और अरहर दाल या ब्राह्मण
को अनाज से बना भोजन, रोगों से छुटकारा। बुधवार - विष्णु पूजन, पुत्र सुख
गुरुवार - वस्त्र, यज्ञोपवीत और घी मिले खीर से देवताओं खासतौर पर गुरु का
पूजन, लंबी आयु मिलती है। शुक्रवार - देवताओं का पूजन खासतौर पर देवी या
लक्ष्मी, ब्राह्मणों को अन्न दान, सभी तरह के भोगों की प्राप्ति। शनिवार -
रुद्र पूजा, तिल से हवन, दान, ब्राह्मणों को तिल मिला भोजन,अकाल मृत्यु से
रक्षा कराने से अकाल मृत्यु नहीं होती।शिवपुराण के मुताबिक सातों दिन इस
तरह देव आराधना से शिव पूजा का ही फल प्राप्त होता है। ऐसा हो घर तो
निश्चित है भाग्योदय यदि कोई घर वास्तु के अनुसार बना हो तो आप अधिक
ऊर्जावान बन सकते हैं। यह सकारात्मक ऊर्जा काम के साथ ही भाग्योदय में भी
सहायक होती हैं। वास्तु के अनुसार ऐसा माना जाता है कि यदि घर का हर एक
कोना वास्तु अनुरूप हो तो घर में आने वाले हर व्यक्ति को बहुत मानसिक शांति
महसुस होती है और घर में रहने वाले हर सदस्य की तरक्की होती है। - पूर्व
दिशा ऐश्वर्य व ख्याति के साथ सौर ऊर्जा प्रदान करती हैं। अत: भवन निर्माण
में इस दिशा में अधिक से अधिक खुला स्थान रखना चाहिए। इस दिशा में भूमि
नीची होना चाहिए। दरवाजे और खिडकियां भी पूर्व दिशा में बनाना उपयुक्त रहता
हैं। बरामदा, बालकनी और वाशबेसिन आदि इसी दिशा में रखना चाहिए। बच्चे भी
इसी दिशा में मुख करके अध्ययन करें तो अच्छे अंक अर्जित कर सकते हैं। -
पश्चिम दिशा में टायलेट बनाएं यह दिशा सौर ऊर्जा की विपरित दिशा हैं अत:
इसे अधिक से अधिक बंद रखना चाहिए। ओवर हेड टेंक इसी दिशा में बनाना चाहिए।
भोजन कक्ष भी इसी दिशा में होना चाहिए। - उत्तर दिशा से चुम्बकीय तरंगों का
भवन में प्रवेश होता हैं। चुम्बकीय तरंगे मानव शरीर में बहने वाले रक्त
संचार एवं स्वास्थ्य को प्रभावित करती हैं। स्वास्थ्य की दृष्टि से इस दिशा
का प्रभाव बहुत अधिक बढ़ जाता हैं। स्वास्थ्य के साथ ही यह धन को भी
प्रभावित करती हैं। इस दिशा में निर्माण करते समय विशेष बातों का ध्यान
रखना आवश्यक हैं। उत्तर दिशा में भूमि रूप से नीची होना चाहिए तथा बालकनी
का निर्माण भी इसी दिशा में करना चाहिए। - उत्तर-पूर्व दिशा में देवताओं का
निवास होने के कारण यह दिशा दो प्रमुख ऊजाओं का समागम हैं। उत्तर दिशा और
पूर्व दिशा दोनों इसी स्थान पर मिलती हैं। अत इस दिशा में चुम्बकीय तरंगों
के साथ-साथ सौर ऊर्जा भी मिलती हैं। इसलिए इसे देवताओं का स्थान अथवा ईशान
दिशा कहते हैं। - घर का मुख्य द्वार इसी दिशा में शुभकारी होता हैं।
उत्तर-पश्चिम दिशा में भोजन कक्ष बनाएं यह दिशा वायु का स्थान हैं। अत: भवन
निर्माण में गोशाला, बेडरूम और गैरेज इसी दिशा में बनाना हितकर होता है।
सेवक कक्ष भी इसी दिशा में बनाना चाहिए। - क्षिण-पश्चिम दिशा में मुखिया का
कक्ष सबसे अच्छा वास्तु नियमों में इस दिशा को राक्षस अथवा नैऋत्व दिशा के
नाम से संबोधित किया गया हैं। परिवार के मुखिया का कक्ष परिवार के मुखिया
का कक्ष इसी दिशा में होना चाहिए। सीढिय़ों का निर्माण भी इसी दिशा में होना
चाहिए। इस दिशा में खुलापन जैसे खिड़की, दरवाजे आदि बिल्कुल न निर्मित
करें। किसी भी प्रकार का गड्ढा, शौचालय अथवा नलकूप का इस दिशा में वास्तु
के अनुसार वर्जित हैं। दक्षिण-पूर्व दिशा में किचिन, सेप्टिक टेंक बनाना
उपयुक्त होता है। यह दिशा अग्नि प्रधान होती हैं। मन में है असफलता का डर
तो ये करें हर इंसान की चाहत होती है कि वो जो भी कार्य करे उसमें उसे
जरूर सफलता मिले। कुछ लोगअपनी किस्मत के बल पर सफल हो जाते हैं लेकिन सफलता
हर एक की किस्मत में नहीं होती। अगर आप किसी जरूरी काम के लिए जा रहे हैं
और आपके मन में संशय है कि आपको सफलता मिलेगी या नहीं। सफलता के लिए आप
अपने कार्य के लिए जाने से पहले अपने राशि के स्वामी ग्रह को प्रसन्न करने
के लिए ग्रहों के अनुकूल रंग का तिलक करें। इससे निश्चित ही आपको अपने काम
में सफलता मिलेगी। मेष- मेष राशि वाले लाल कुमकुम का तिलक लगाएं। वृष-
वृष राशि के स्वामी शुक्र हैं इसलिए किसी भी हर कार्य में सफलता के लिए दही
का तिलक लगाएं। मिथुन- इस राशि वालो को बुध को बली करने के लिए अष्टगंध
का तिलक लगाना चाहिए। कर्क - कर्क राशि के स्वामी चन्द्र को प्रसन्न करने
के लिए सफेद चंदन का तिलक लगाएं। सिंह- इस राशि के स्वामी सूर्य को बली
करने के लिए लाल चंदन का तिलक लगाएं। कन्या- कन्या राशि के स्वामी बुध को
बली करने के लिए अष्टगंध का तिलक लगाएं। तुला- तुला वाले जातकों को दही का
तिलक लगाना चाहिए। वृश्चिक- इस राशि के वालों को सिंदुर का तिलक लगाना
चाहिए। धनु - इस राशि के स्वामी गुरू हैं इसलिए हल्दी का तिलक लगाएं।मकर-
मकर राशि के स्वामी शनि को प्रसन्न करने के लिए काजल का तिलक लगाना
चाहिए।कुंभ- कुंभ के स्वामी भी शनि है इसलिए काजल या भस्म का तिलक लगाएं।
मीन- मीन राशि वाले केसर का तिलक करें। राशि के अनुसार अवसाद और टेंशन से
बच सकते है। ज्योतिष के अनुसार नौ ग्रहों में चंद्रमा को मन का स्वामी
माना गया है। कुंडली में चंद्रमा की अशुभ स्थिति के कारण व्यक्ति अवसाद
ग्रस्त हो जाता है और उसका मन कुंठीत हो जाता है। इसलिए अपनी राशि के
अनुसार चंद्रमा से संबंधित प्रयोग करें तो आप अवसाद और टेंशन से बच सकते
है। मेष- मेष राशि वाले जातक रात में सिरहाने, तांबे के पात्र में जल भर
कर रखें और सुबह कांटेदार पेड़ पौधे में डालें तो फ्रस्ट्रेशन से बच सकते
है। वृष- सोमवार को सफेद कपड़े में चावल और मिश्री बांधकर बहते हुए पानी
में बहाने से आपका मन हमेशा स्वस्थ्य बना रहेगा। मिथुन- मिथुन राशि वाले
लोग गले में या कनिष्ठीका अंगुली यानी लिटिल फिंगर में चांदी की अंगुठी में
मोती धारण करें। कर्क- आपकी राशि का स्वामी चंद्रमा है इसलिए आप गाय के
कच्चे दूध से शिव जी का अभिषेक करें। सिंह- रात में तांबे के बर्तन में जल
भर कर रखें और सुबह उस जल को पिने से आप कभी कुंठीत नही होंगे। कन्या-
आपकी राशि के अनुसार आपको पानी का दान देना चाहिए। तुला- आपकी राशि का
स्वामी ग्रह शुक्र है इसलिए आपको पानी का दान नही देना चाहिए। वृश्चिक-
वृश्चिक राशि वालों के लिए चंद्रमा अशुभ फल देने वाला होता है इसलिए इन्हे
चांदी के साथ मोती धारण करना चाहिए और गहरे पानी से सावधान रहना चाहिए।
धनु- फ्रस्ट्रेशन से बचने के लिए धनु राशि वाले लोगो को श्मशान या अस्पताल
में प्याऊ लगवाना चाहिए। मकर- यह राशि शनि देव की राशि है इस राशि वालों
को शिवलिंग पर गंगाजल चढ़ाना चाहिए। कुंभ- अपनी राशि के अनुसार आपको पानी
या कच्चा दूध मटके में रख कर सुखी नदी में गाढऩा चाहिए। मीन- आपकी राशि
जलतत्व की राशि है इसलिए मीन राशि वाले लोगों को मछली को दाना डालना चाहिए
निरोगी जीवन का श्रेष्ठ धार्मिक और वैज्ञानिक उपाय वैज्ञानिक दृष्टि से
हवन से निकलने वाले अग्रि के ताप और उसमें आहुति के लिए उपयोग की जाने वाली
हवन की प्राकृतिक सामग्री यानि समिधा वातावरण में फैले रोगाणु और विषाणुओं
को नष्ट करती है, बल्कि प्रदूषण को भी मिटाने में सहायक होती है। इस तरह
हवन स्वस्थ और निरोगी जीवन का श्रेष्ठ धार्मिक और वैज्ञानिक उपाय है।
खासतौर पर कुछ विशेष काल में किए गए हवन धार्मिक लाभ के साथ प्राकृतिक व
भौतिक सुख भी देने वाले माने गए हैं। इसी क्रम में दीपावली के पांच दिवसीय
महाउत्सव के दौरान अलग-अलग देवी-देवताओं की प्रसन्न्ता से धन, ऐश्वर्य की
कामनापूर्ति के लिए यज्ञ-हवन का विधान है। शास्त्रों में हवन से धन,
ऐश्वर्य के साथ ही अच्छे स्वास्थ्य और रोगों से छुटकारा देने के लिए कुछ
विशेष प्राकृतिक सामग्रियों से हवन का महत्व बताया गया है। जानते हैं
अलग-अलग रोग और पीड़ाओं से मुक्ति की इन विशेष हवन सामग्रियों को -
1. दूध
में डूबे आम के पत्ते - बुखार 2. शहद और घी - मधुमेह ३. ढाक के पत्ते -
आंखों की बीमारी ४. खड़ी मसूर, घी, शहद, शक्कर - मुख रोग ५. कन्दमूल या कोई
भी फल - गर्भाशय या गर्भ शिशु दोष ६. भाँग,धतुरा - मनोरोग ७. गूलर,आँवला -
शरीर में दर्द ८. घी लगी दूब या दूर्वा - कोई भयंकर रोग या असाध्य बीमारी
९. बेल या कोई फल - उदर यानि पेट की बीमारियां १०. बेलगिरि,आँवला,सरसों,तिल
- किसी भी तरह की रोग शांति ११. घी - लंबी आयु के लिए १२. घी लगी आक की
लकडी और पत्ते - शरीर की रक्षा और स्वास्थ्य के लिए। चूंकि सफल जीवन के लिए
अच्छा स्वास्थ्य भी धन, संपदा माना जाता है। कहा भी जाता है हेल्थ इज
वेल्थ और जान है तो जहान है। इसलिए दीपावली पर मात्र धन की कामना ही नहीं
अच्छे स्वास्थ्य और निरोगी जीवन के लिए पूजन-कर्म के साथ इन विशेष हवन
सामग्रियों से हवन स्वयं या किसी योग्य ब्राह्मण से कराएं और निरोगी जीवन
का लुत्फ उठाए। हवन विशेष त्यौहार नहीं बल्कि नियमित रुप से करने पर घर और
परिवार के वातावरण को शुद्ध बनाता है। हिन्दू धर्म में 'कर्पूर' जलाना क्यों जरूरी? Webdunia कर्पूरगौरम करुणावतारम संसारसारं भुजगेंद्रहारम। सदावसंतम हृदयारविन्दे भवम भवानी सहितं नमामि।। अर्थात : कर्पूर के समान चमकीले गौर वर्णवाले, करुणा के साक्षात् अवतार, इस असार संसार के एकमात्र सार, गले में भुजंग की माला डाले, भगवान शंकर जो माता भवानी के साथ भक्तों के हृदय कमलों में सदा सर्वदा बसे रहते हैं...हम उन देवाधिदेव की वंदना करते हैं। हिन्दू धर्म में संध्यावंदन, आरती या प्रार्थना के बाद कर्पूर जलाकर उसकी आरती लेने की परंपरा है। पूजन, आरती आदि धार्मिक कार्यों में कर्पूर का विशेष महत्व बताया गया है। रात्रि में सोने से पूर्व कर्पूर जलाकर सोना तो और भी लाभदायक है। कर्पूर के फायदे : पितृदोष निदान : कर्पूर अति सुगंधित पदार्थ होता है। इसके दहन से वातावरण सुगंधित हो जाता है। कर्पूर जलाने से देवदोष व पितृदोष का शमन होता है। अनिंद्रा : रात में सोते वक्त कर्पूर जलाने से नींद अच्छी आती है। प्रतिदिन सुबह और शाम कर्पूर जलाते रहने से घर में किसी भी प्रकार की आकस्मि घटना और दुर्घटना नहीं होती। जीवाणु नाशक : वैज्ञानिक शोधों से यह भी ज्ञात हुआ है कि इसकी सुगंध से जीवाणु, विषाणु आदि बीमारी फैलाने वाले जीव नष्ट हो जाते हैं जिससे वातावरण शुद्ध हो जाता है तथा बीमारी होने का भय भी नहीं रहता। औषधि के रूप में उपयोग : * कर्पूर का तेल त्वचा में रक्त संचार को सहज बनाता है। * गर्दन में दर्द होने पर कर्पूर युक्त बाम लगाने पर आराम मिलता है। * सूजन, मुहांसे और तैलीयत्वचा के उपचार में इसका उपयोग किया जाता है। * आर्थराइटिस के दर्द से राहत पाने के लिए कर्पूर मिश्रित मलहम का प्रयोग करें। * पानी में कर्पूर के तेल की कुछ बूंदों को डालकर नहाएं। यह आपको तरोताजा रखेगा। * कफ की वजह से छाती में होने वाली जकड़न में कर्पूर का तेल मलने से राहत मिलती है। * कर्पूर युक्त मलहम की मालिश से मोच और मांसपेशियों में खिंचाव और दर्द में राहत मिलती है। नोट : गर्भावस्था या अस्थमा के मरीजों को कर्पूर तेल का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए।
वास्तु शास्त्र के अनुसार कैसे हो भगवान गणेश वास्तु में वर्णित है हर कामना के खास गणपति घर में सुख-शांति और रिद्धि-सिद्धि के लिए गणेश जी की स्थापना की जाती है। अगर यह स्थापना वास्तु के अनुसार की जाए तो इसका फल और भी अधिक हो जाता है। जानिए वास्तु शास्त्र के अनुसार कैसे हो भगवान गणेश वास्तु में गणपति की मूर्ति एक, दो, तीन, चार और पांच सिरों वाली पाई जाती है। इसी तरह गणपति के 3 दांत पाए जाते हैं। सामान्यत: 2 आंखें पाई जाती हैं, किंतु तंत्र मार्ग संबंधी मूर्तियों में तीसरा नेत्र भी देखा गया है। भगवान गणेश की मूर्तियां 2, 4, 8 और 16 भुजाओं वाली भी पाई जाती हैं। 14 प्रकार की महाविद्याओं के आधार पर 12 प्रकार की गणपति प्रतिमाओं के निर्माण से वास्तु जगत में तहलका मच गया है। * संतान गणपति- भगवान गणपति के 1008 नामों में से संतान गणपति की प्रतिमा उस घर में स्थापित करनी चाहिए जिनके घर में संतान नहीं हो रही हो। वे लोग संतान गणपति की विशिष्ट मंत्र पूरित प्रतिमा द्वार पर लगाएं जिसका प्रतिफल सकारात्मक होता है। * विघ्नहर्ता गणपति- विघ्नहर्ता भगवान गणपति की प्रतिमा उस घर में स्थापित करनी चाहिए, जिस घर में कलह, विघ्न, अशांति, क्लेश, तनाव, मानसिक संताप आदि दुर्गुण होते हैं। पति-पत्नी में मनमुटाव, बच्चों में अशांति का दोष पाया जाता है। ऐसे घर में प्रवेश द्वार पर मूर्ति स्थापित करनी चाहिए। * विद्या प्रदायक गणपति- बच्चों में पढ़ाई के प्रति दिलचस्पी पैदा करने के लिए गृहस्वामी को विद्या प्रदायक गणपति अपने घर के प्रवेश द्वार पर स्थापित करना चाहिए। * विवाह विनायक- गणपति के इस स्वरूप का आह्वान उन घरों में विधि-विधानपूर्वक होता है, जिन घरों में बच्चों के विवाह जल्द तय नहीं होते। * चिंतानाशक गणपति- जिन घरों में तनाव व चिंता बनी रहती है, ऐसे घरों में चिंतानाशक गणपति की प्रतिमा को 'चिंतामणि चर्वणलालसाय नम:' जैसे मंत्रों का सम्पुट कराकर स्थापित करना चाहिए। * धनदायक गणपति- आज हर व्यक्ति दौलतमंद होना चाहता है इसलिए प्राय: सभी घरों में गणपति के इस स्वरूप वाली प्रतिमा को मंत्रों से सम्पुट करके स्थापित किया जाता है ताकि उन घरों में दरिद्रता का लोप हो, सुख-समृद्धि व शांति का वातावरण कायम हो सके। * सिद्धिनायक गणपति- कार्य में सफलता व साधनों की पूर्ति के लिए सिद्धिनायक गणपति को घर में लाना चाहिए। * सोपारी गणपति- आध्यात्मिक ज्ञानार्जन हेतु सोपारी गणपति की आराधना करनी चाहिए। * शत्रुहंता गणपति- शत्रुओं का नाश करने के लिए शत्रुहंता गणपति की आराधना करना चाहिए। * आनंददायक गणपति- परिवार में आनंद, खुशी, उत्साह व सुख के लिए आनंददायक गणपति की प्रतिमा को शुभ मुहूर्त में घर में स्थापित करना चाहिए विजय सिद्धि गणपति- मुकदमे में विजय, शत्रु का नाश करने, पड़ोसी को शांत करने के उद्देश्य से लोग अपने घरों में 'विजय स्थिराय नम:' जैसे मंत्र वाले बाबा गणपति की प्रतिमा के इस स्वरूप को स्थापित करते हैं। * ऋणमोचन गणपति- कोई पुराना ऋण, जिसे चुकता करने की स्थिति में न हो, तो ऋण मोचन गणपति घर में लगाना चाहिए। रोगनाशक गणपति- कोई पुराना रोग हो, जो दवा से ठीक न होता है, उन घरों में रोगनाशक गणपति की आराधना करनी चाहिए। * नेतृत्व शक्ति विकासक गणपति- राजनीतिक परिवारों में उच्च पद प्रतिष्ठा के लिए लोग गणपति के इस स्वरूप की आराधना प्राय: इन मंत्रों से करते हैं- 'गणध्याक्षाय नम:, गणनायकाय नम: प्रथम पूजिताय नम:।'
Scientific aspects of Havan (oblations to the fire) देव यज्ञ = हवन का वैज्ञानिक स्वरुप अथ हवन विधि
गणपति हवन विधि एक सरल हवन विधान प्रस्तुत है जो आप आसानी से स्वयम कर सकते हैं । ऊं अग्नये नमः .........७ बार इस मन्त्र का जाप करें तथा आग जला लें ऊं गुरुभ्यो नमः ..... २१ बार इस मन्त्र का जाप करें । ऊं अग्नये स्वाहा ...... ७ आहुति (अग्नि मे डालें) ऊं गं स्वाहा ..... १ बार ऊं भैरवाय स्वाहा ..... ११ बार ऊं गुरुभ्यो नमः स्वाहा .....१६ बार ऊं गं गणपतये स्वाहा ..... १०८ बार अन्त में कहें कि गणपति भगवान की कृपा मुझे प्राप्त हो.... गलतियों के लिये क्षमा मांगे..... तीन बार पानी छिडककर शांति शांति शांति ऊं कहें.....
श्री गणेश जी की पूजन विधि गणेश पूजन (सरलतम विधि ) लम्बी सूंड, बड़ी आँखें ,बड़े कान ,सुनहरा सिन्दूरी वर्ण यह ध्यान करते ही प्रथम पूज्य श्री गणेश जी का पवित्र स्वरुप हमारे सामने आ जाता है | सुखी व सफल जीवन के इरादों से आगे बढऩे के लिए बुद्धिदाता भगवान श्री गणेश के नाम स्मरण से ही शुरुआत शुभ मानी जाती है। जीवन में प्रसन्नता और हर छेत्र में सफलता प्राप्त करने हतु श्री गजानन महाराज के पूजन की सरलतम विधि विद्वान पंडित जी द्वारा बताई गयी है ,जो की आपके लिए प्रस्तुत है -प्रातः काल शुद्ध होकर गणेश जी के सम्मुख बैठ कर ध्यान करें और पुष्प, रोली ,अछत आदि चीजों से पूजन करें और विशेष रूप से सिन्दूर चढ़ाएं तथा दूर्बा दल(११या २१ दूब का अंकुर )समर्पित करें|यदि संभव हो तो फल और मीठा चढ़ाएं (मीठे में गणेश जी को मूंग के लड्डू प्रिय हैं ) | अगरबत्ती और दीप जलाएं और नीचे लिखे सरल मंत्रों का मन ही मन 11, 21 या अधिक बार जप करें :- ॐ चतुराय नम: | ॐ गजाननाय नम: | ॐ विघ्रराजाय नम: | ॐ प्रसन्नात्मने नम: | पूजा और मंत्र जप के बाद श्री गणेश आरती कर सफलता व समृद्धि की कामना करें। सामान्य पूजन पूजन सामग्री (सामान्य पूजन के लिए ) -शुद्ध जल,गंगाजल,सिन्दूर,रोली,रक्षा,कपूर,घी,दही,दूब,चीनी,पुष्प,पान,सुपारी,रूई,प्रसाद (लड्डू गणेश जी को बहुत प्रिय है) | विधि- गणेश जी की मूर्ती सामने रखकर और श्रद्धा पूर्वक उस पर पुष्प छोड़े यदि मूर्ती न हो तो सुपारी पर मौली लपेटकर चावल पर स्थापित करें और आवाहन मंत्र पढकर अक्षत डालें |
वृहद पूजन विधि पूजन सामग्री (वृहद् पूजन के लिए ) -शुद्ध जल,दूध,दही,शहद,घी,चीनी,पंचामृत,वस्त्र,जनेऊ,मधुपर्क,सुगंध,लाल चन्दन,रोली,सिन्दूर,अक्षत(चावल),फूल,माला,बेलपत्र,दूब,शमीपत्र,गुलाल,आभूषण,सुगन्धित तेल,धूपबत्ती,दीपक,प्रसाद,फल,गंगाजल,पान,सुपारी,रूई,कपूर | विधि- गणेश जी की मूर्ती सामने रखकर और श्रद्धा पूर्वक उस पर पुष्प छोड़े यदि मूर्ती न हो तो सुपारी पर मौली लपेटकर चावल पर स्थापित करें -
भाद्रपद माह की चतुर्थी को मनाया जाने वाला गणेश चतुर्थी का त्योहार पूरे भारत में जोर-शोर से मनाया जाता है। हर भक्तगण अपने-अपने तरीके से भगवान गणेश के जन्मदिन को मनाता है। महाराष्ट्र में गणेश चतुर्थी से लेकर अनंत चतुर्दशी तक गणेशोत्सव मनाया जाता है। पूरा देश मंगलमूर्ति भगवान गणेश को अपने घर लाने के तैयारियों बड़े जोर-शोर से करता है। कहते हैं कि इस दिन भगवान गणेश धरती पर आते हैं और अपने भक्तों के कष्टों को हर लेते हैं। बुद्धिदाता, विघ्नहर्ता जैसे 108 नाम वाले भगवान गणेश के हर एक नाम में अपने भक्तों का उद्धार छुपा हुआ है। आधुनिक समय में अधिकतर हर व्यक्ति किसी ना किसी परेशानी से परेशान रहता है। इस परेशानी को बहुत हद तक कम किया जा सकता है यदि रोज सुबह के समय गणेश जी के 108 नाम लिए जाएँ। गणेश जी को वैसे भी विघ्नहर्त्ता कहा गया है। गणेश जी के 108 नाम इस प्रकार हैं:- गणेश नामवली-108
1. बालगणपति: सबसे प्रिय बालक 2. भालचन्द्र: जिसके मस्तक पर चंद्रमा हो 3. बुद्धिनाथ: बुद्धि के भगवान 4. धूम्रवर्ण: धुंए को उड़ाने वाला 5. एकाक्षर: एकल अक्षर 6. एकदन्त: एक दांत वाले 7. गजकर्ण: हाथी की तरह आंखें वाला 8. गजानन: हाथी के मुँख वाले भगवान 9. गजनान: हाथी के मुख वाले भगवान 10. गजवक्र: हाथी की सूंड वाला 11. गजवक्त्र: जिसका हाथी की तरह मुँह है 12. गणाध्यक्ष: सभी जणों का मालिक 13. गणपति: सभी गणों के मालिक 14. गौरीसुत: माता गौरी का बेटा 15. लम्बकर्ण: बड़े कान वाले देव 16. लम्बोदर: बड़े पेट वाले 17. महाबल: अत्यधिक बलशाली वाले प्रभु 18. महागणपति: देवातिदेव 19. महेश्वर: सारे ब्रह्मांड के भगवान 20. मंगलमूर्त्ति: सभी शुभ कार्य के देव 21. मूषकवाहन: जिसका सारथी मूषक है 22. निदीश्वरम: धन और निधि के दाता 23. प्रथमेश्वर: सब के बीच प्रथम आने वाला 24. शूपकर्ण: बड़े कान वाले देव 25. शुभम: सभी शुभ कार्यों के प्रभु 26. सिद्धिदाता: इच्छाओं और अवसरों के स्वामी 27. सिद्दिविनायक: सफलता के स्वामी 28. सुरेश्वरम: देवों के देव 29. वक्रतुण्ड: घुमावदार सूंड 30. अखूरथ: जिसका सारथी मूषक है 31. अलम्पता: अनन्त देव 32. अमित: अतुलनीय प्रभु 33. अनन्तचिदरुपम: अनंत और व्यक्ति चेतना 34. अवनीश: पूरे विश्व के प्रभु 35. अविघ्न: बाधाओं को हरने वाले 36. भीम: विशाल 37. भूपति: धरती के मालिक 38. भुवनपति: देवों के देव 39. बुद्धिप्रिय: ज्ञान के दाता 40. बुद्धिविधाता: बुद्धि के मालिक 41. चतुर्भुज: चार भुजाओं वाले 42. देवादेव: सभी भगवान में सर्वोपरी 43. देवांतकनाशकारी: बुराइयों और असुरों के विनाशक 44. देवव्रत: सबकी तपस्या स्वीकार करने वाले 45. देवेन्द्राशिक: सभी देवताओं की रक्षा करने वाले 46. धार्मिक: दान देने वाला 47. दूर्जा: अपराजित देव 48. द्वैमातुर: दो माताओं वाले 49. एकदंष्ट्र: एक दांत वाले 50. ईशानपुत्र: भगवान शिव के बेटे 51. गदाधर: जिसका हथियार गदा है 52. गणाध्यक्षिण: सभी पिंडों के नेता 53. गुणिन: जो सभी गुणों क ज्ञानी 54. हरिद्र: स्वर्ण के रंग वाला 55. हेरम्ब: माँ का प्रिय पुत्र 56. कपिल: पीले भूरे रंग वाला 57. कवीश: कवियों के स्वामी 58. कीर्त्ति: यश के स्वामी 59. कृपाकर: कृपा करने वाले 60. कृष्णपिंगाश: पीली भूरी आंखवाले 61. क्षेमंकरी: माफी प्रदान करने वाला 62. क्षिप्रा: आराधना के योग्य 63. मनोमय: दिल जीतने वाले 64. मृत्युंजय: मौत को हरने वाले 65. मूढ़ाकरम: जिन्में खुशी का वास होता है 66. मुक्तिदायी: शाश्वत आनंद के दाता 67. नादप्रतिष्ठित: जिसे संगीत से प्यार हो 68. नमस्थेतु: सभी बुराइयों और पापों पर विजय प्राप्त करने वाले 69. नन्दन: भगवान शिव का बेटा 70. सिद्धांथ: सफलता और उपलब्धियों की गुरु 71. पीताम्बर: पीले वस्त्र धारण करने वाला 72. प्रमोद: आनंद 73. पुरुष: अद्भुत व्यक्तित्व 74. रक्त: लाल रंग के शरीर वाला 75. रुद्रप्रिय: भगवान शिव के चहीते 76. सर्वदेवात्मन: सभी स्वर्गीय प्रसाद के स्वीकार्ता 77. सर्वसिद्धांत: कौशल और बुद्धि के दाता 78. सर्वात्मन: ब्रह्मांड की रक्षा करने वाला 79. ओमकार: ओम के आकार वाला 80. शशिवर्णम: जिसका रंग चंद्रमा को भाता हो 81. शुभगुणकानन: जो सभी गुण के गुरु हैं 82. श्वेता: जो सफेद रंग के रूप में शुद्ध है 83. सिद्धिप्रिय: इच्छापूर्ति वाले 84. स्कन्दपूर्वज: भगवान कार्तिकेय के भाई 85. सुमुख: शुभ मुख वाले 86. स्वरुप: सौंदर्य के प्रेमी 87. तरुण: जिसकी कोई आयु न हो 88. उद्दण्ड: शरारती 89. उमापुत्र: पार्वती के बेटे 90. वरगणपति: अवसरों के स्वामी 91. वरप्रद: इच्छाओं और अवसरों के अनुदाता 92. वरदविनायक: सफलता के स्वामी 93. वीरगणपति: वीर प्रभु 94. विद्यावारिधि: बुद्धि की देव 95. विघ्नहर: बाधाओं को दूर करने वाले 96. विघ्नहर्त्ता: बुद्धि की देव 97. विघ्नविनाशन: बाधाओं का अंत करने वाले 98. विघ्नराज: सभी बाधाओं के मालिक 99. विघ्नराजेन्द्र: सभी बाधाओं के भगवान 100. विघ्नविनाशाय: सभी बाधाओं का नाश करने वाला 101. विघ्नेश्वर: सभी बाधाओं के हरने वाले भगवान 102. विकट: अत्यंत विशाल 103. विनायक: सब का भगवान 104. विश्वमुख: ब्रह्मांड के गुरु 105. विश्वराजा: संसार के स्वामी 105. यज्ञकाय: सभी पवित्र और बलि को स्वीकार करने वाला 106. यशस्कर: प्रसिद्धि और भाग्य के स्वामी 107. यशस्विन: सबसे प्यारे और लोकप्रिय देव 108. योगाधिप: ध्यान के प्रभु
भगवान श्रीकृष्ण जन्माष्टमी : कैसे करें सरल पूजन Krishn_bhagwan भगवान
श्रीकृष्ण का जन्म अष्टमी तिथि, रोहिणी नक्षत्र, वृषभ राशि, भाद्रपद कृष्ण
अष्टमी, बुधवार, रोहिणी नक्षत्र एवं वृष के चन्द्रमाकालीन अर्धरात्रि के
समय हुआ था। ऋषियों के मतानुसार सप्तमी युक्त अष्टमी ही व्रत, पूजन आदि
हेतु ग्रहण करनी चाहिए। वैष्णव संप्रदाय के अधिकांश लोग उदयकालिक नवमी युत
श्रीकृष्ण जन्माष्टमी को ग्रहण करते हैं। भगवान श्रीकृष्ण का जन्मदिन बडे़ ही धूमधाम से मनाया जाता है। इस दिन व्रत करनेवाले को चाहिए कि उपवास के पहले दिन कम भोजन करें। रात्रि में ब्रह्मचर्य का पालन करें। व्रत के दिन स्नानादि नित्यकर्म करके सूर्यादि सभी देव दिशाओं को नमस्कार करके पूर्व या उत्तर मुख बैठें। भगवान
श्रीकृष्ण को वैजयंती के पुष्प अधिक प्रिय है, अतः जहां तक बन पडे़
वैजयंती के पुष्प अर्पित करें और पंचगंध लेकर व्रत का संकल्प करें। कृष्णजी
की मूर्ति को गंगा जल से स्नान कराएं। फिर दूध, दही, घी, शक्कर, शहद, केसर
के घोल से स्नान कराकर फिर शुद्ध जल से स्नान कराएं। फिर सुन्दर वस्त्र
पहनाएं। रात्रि बारह बजे भोग लगाकर पूजन करें व फिर श्रीकृष्णजी की आरती
उतारें।
कैसे मनाएं कृष्ण जन्माष्टमी पर्व Webdunia भारतीय
पौराणिक ग्रंथों के अनुसार कृष्ण सभी दृष्टि से पूर्णावतार हैं।
आध्यात्मिक, नैतिक या दूसरी किसी भी दृष्टि से देखेंगे तो मालूम होगा कि
कृष्ण जैसा समाज उद्धारक दूसरा कोई पैदा हुआ ही नहीं है। जब-जब भी धर्म
का पतन हुआ है और धरती पर असुरों के अत्याचार बढ़े हैं तब-तब भगवान ने
पृथ्वी पर अवतार लेकर सत्य और धर्म की स्थापना की है। भाद्रपद माह की कृष्ण
पक्ष की अष्टमी की मध्यरात्रि को अत्याचारी कंस का विनाश करने के लिए
मथुरा में भगवान श्रीकृष्ण ने अवतार लिया था। ऐसे भगवान कृष्ण के व्रत-पूजन से संबंधित जानकारी प्रस्तुत है :- व्रत-पूजन कैसे करें : - उपवास की पूर्व रात्रि को हल्का भोजन करें और ब्रह्मचर्य का पालन करें। -
उपवास के दिन प्रातःकाल स्नानादि नित्यकर्मों से निवृत्त हो जाएं। पश्चात
सूर्य, सोम, यम, काल, संधि, भूत, पवन, दिक्पति, भूमि, आकाश, खेचर, अमर और
ब्रह्मादि को नमस्कार कर पूर्व या उत्तर मुख बैठें। - इसके बाद जल, फल, कुश और गंध लेकर संकल्प करें : ममखिलपापप्रशमनपूर्वक सर्वाभीष्ट सिद्धये श्रीकृष्ण जन्माष्टमी व्रतमहं करिष्ये॥ अब मध्याह्न के समय काले तिलों के जल से स्नान कर देवकीजी के लिए 'सूतिकागृह' नियत करें। - तत्पश्चात भगवान श्रीकृष्ण की मूर्ति या चित्र स्थापित करें। - मूर्ति में बालक श्रीकृष्ण को स्तनपान कराती हुई देवकी हों और लक्ष्मीजी उनके चरण स्पर्श किए हों अथवा ऐसे भाव हो। - इसके बाद विधि-विधान से पूजन करें। पूजन में देवकी, वासुदेव, बलदेव, नंद, यशोदा और लक्ष्मी इन सबका नाम क्रमशः निर्दिष्ट करना चाहिए। फिर निम्न मंत्र से पुष्पांजलि अर्पण करें :- 'प्रणमे देव जननी त्वया जातस्तु वामनः। वसुदेवात तथा कृष्णो नमस्तुभ्यं नमो नमः। सुपुत्रार्घ्यं प्रदत्तं में गृहाणेमं नमोऽस्तुते।' अंत में रतजगा रखकर भजन-कीर्तन करें। साथ ही प्रसाद वितरण करके कृष्ण जन्माष्टमी पर्व मनाएं। इस
वर्ष 17 अगस्त, रविवार एवं 18 अगस्त, सोमवार को श्रीकृष्ण जन्माष्टमी मनाई
जाएगी। 17 अगस्त को सूर्य संक्रांति (सूर्य का सिंह राशि में प्रवेश) तथा
18 अगस्त को रोहिणी नक्षत्र होने से दोनों दिनों का महत्व है। सकाम मंत्रों
का प्रयोग निम्नलिखित है : - (1) यदि कोई बड़ी आपदा हो और कोई मार्ग न मिल रहा हो तो यथाशक्ति निम्न मंत्र का जाप करें : - मंत्र - 'श्रीकृष्ण:शरणं मम्।' (2) शांति तथा मोक्ष पाने के लिए निम्न मंत्र है - मंत्र - 'ॐ हृषिकेशाय नम:'। (3) शत्रु शांति के लिए - मंत्र - 'क्लीं हृषिकेशाय नम:'। (4) मोक्ष पाने के लिए तथा भक्ति वैराग्य के लिए - मंत्र - 'ॐ नमो भगवते वासुदेवाय'। (5) सौभाग्य वृद्धि तथा ऐश्वर्य प्राप्ति तथा क्लेश निवारण के लिए निम्न मंत्र जपें - मंत्र - 'ॐ ऐं श्री क्लीं प्राण वल्लभाय सौ: सौभाग्यदाय श्री कृष्णाय स्वाहा'। (6) संतान प्राप्ति के लिए सबसे ज्यादा प्रचलित तथा अमोघ मंत्र निम्न है - मंत्र - 'ॐ देवकीसुत गोविन्द वासुदेव जगत्पते'। देहि में तनयं कृष्ण त्वामहं शरणं गत:।।' (7) निम्न मंत्र कल्पतरु के समान है। जिसका मानसिक जाप हमेशा कर सकते हैं। मंत्र - 'ॐ नमो नारायणाय' (8) कैसी भी समस्या को दूर करने हेतु निम्न पाठ किया जाता है। मंत्र - गजेन्द्र मोक्ष के 108 पाठ। * राम, कृष्ण, विष्णु के मंत्र का जाप तुलसी की माला से ही करें तथा पीला या लाल आसन मोक्ष के लिए कुश-आसन का प्रयोग कर सकते हैं। * पूर्वाभिमुख या उत्तराभिमुख होकर सामने भगवान का चित्र, घी का दीपक, धूप तथा नैवेद्यादि लगाकर जप करें। इति:।