वास्तु शास्त्र के अनुसार कैसे हो भगवान गणेश
वास्तु में वर्णित है हर कामना के खास गणपति
घर में सुख-शांति और रिद्धि-सिद्धि के लिए गणेश जी की स्थापना की जाती है। अगर यह स्थापना वास्तु के अनुसार की जाए तो इसका फल और भी अधिक हो जाता है। जानिए वास्तु शास्त्र के अनुसार कैसे हो भगवान गणेश
वास्तु में गणपति की मूर्ति एक, दो, तीन, चार और पांच सिरों वाली पाई जाती है। इसी तरह गणपति के 3 दांत पाए जाते हैं। सामान्यत: 2 आंखें पाई जाती हैं, किंतु तंत्र मार्ग संबंधी मूर्तियों में तीसरा नेत्र भी देखा गया है।
भगवान गणेश की मूर्तियां 2, 4, 8 और 16 भुजाओं वाली भी पाई जाती हैं। 14 प्रकार की महाविद्याओं के आधार पर 12 प्रकार की गणपति प्रतिमाओं के निर्माण से वास्तु जगत में तहलका मच गया है।
* संतान गणपति- भगवान गणपति के 1008 नामों में से संतान गणपति की प्रतिमा उस घर में स्थापित करनी चाहिए जिनके घर में संतान नहीं हो रही हो। वे लोग संतान गणपति की विशिष्ट मंत्र पूरित प्रतिमा द्वार पर लगाएं जिसका प्रतिफल सकारात्मक होता है।
* विघ्नहर्ता गणपति- विघ्नहर्ता भगवान गणपति की प्रतिमा उस घर में स्थापित करनी चाहिए, जिस घर में कलह, विघ्न, अशांति, क्लेश, तनाव, मानसिक संताप आदि दुर्गुण होते हैं। पति-पत्नी में मनमुटाव, बच्चों में अशांति का दोष पाया जाता है। ऐसे घर में प्रवेश द्वार पर मूर्ति स्थापित करनी चाहिए।
* विद्या प्रदायक गणपति- बच्चों में पढ़ाई के प्रति दिलचस्पी पैदा करने के लिए गृहस्वामी को विद्या प्रदायक गणपति अपने घर के प्रवेश द्वार पर स्थापित करना चाहिए।
* विवाह विनायक- गणपति के इस स्वरूप का आह्वान उन घरों में विधि-विधानपूर्वक होता है, जिन घरों में बच्चों के विवाह जल्द तय नहीं होते।
* चिंतानाशक गणपति- जिन घरों में तनाव व चिंता बनी रहती है, ऐसे घरों में चिंतानाशक गणपति की प्रतिमा को 'चिंतामणि चर्वणलालसाय नम:' जैसे मंत्रों का सम्पुट कराकर स्थापित करना चाहिए।
* धनदायक गणपति- आज हर व्यक्ति दौलतमंद होना चाहता है इसलिए प्राय: सभी घरों में गणपति के इस स्वरूप वाली प्रतिमा को मंत्रों से सम्पुट करके स्थापित किया जाता है ताकि उन घरों में दरिद्रता का लोप हो, सुख-समृद्धि व शांति का वातावरण कायम हो सके।
* सिद्धिनायक गणपति- कार्य में सफलता व साधनों की पूर्ति के लिए सिद्धिनायक गणपति को घर में लाना चाहिए।
* सोपारी गणपति- आध्यात्मिक ज्ञानार्जन हेतु सोपारी गणपति की आराधना करनी चाहिए।
* शत्रुहंता गणपति- शत्रुओं का नाश करने के लिए शत्रुहंता गणपति की आराधना करना चाहिए।
* आनंददायक गणपति- परिवार में आनंद, खुशी, उत्साह व सुख के लिए आनंददायक गणपति की प्रतिमा को शुभ मुहूर्त में घर में स्थापित करना चाहिए
विजय सिद्धि गणपति- मुकदमे में विजय, शत्रु का नाश करने, पड़ोसी को शांत करने के उद्देश्य से लोग अपने घरों में 'विजय स्थिराय नम:' जैसे मंत्र वाले बाबा गणपति की प्रतिमा के इस स्वरूप को स्थापित करते हैं।
* ऋणमोचन गणपति- कोई पुराना ऋण, जिसे चुकता करने की स्थिति में न हो, तो ऋण मोचन गणपति घर में लगाना चाहिए।
रोगनाशक गणपति- कोई पुराना रोग हो, जो दवा से ठीक न होता है, उन घरों में रोगनाशक गणपति की आराधना करनी चाहिए।
* नेतृत्व शक्ति विकासक गणपति- राजनीतिक परिवारों में उच्च पद प्रतिष्ठा के लिए लोग गणपति के इस स्वरूप की आराधना प्राय: इन मंत्रों से करते हैं- 'गणध्याक्षाय नम:, गणनायकाय नम: प्रथम पूजिताय नम:।'
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भगवान श्रीकृष्ण का जन्म अष्टमी तिथि, रोहिणी नक्षत्र, वृषभ राशि, भाद्रपद कृष्ण अष्टमी, बुधवार, रोहिणी नक्षत्र एवं वृष के चन्द्रमाकालीन अर्धरात्रि के समय हुआ था।
ऋषियों के मतानुसार सप्तमी युक्त अष्टमी ही व्रत, पूजन आदि हेतु ग्रहण करनी चाहिए। वैष्णव संप्रदाय के अधिकांश लोग उदयकालिक नवमी युत श्रीकृष्ण जन्माष्टमी को ग्रहण करते हैं।
भगवान श्रीकृष्ण का जन्मदिन बडे़ ही धूमधाम से मनाया जाता है।
इस दिन व्रत करनेवाले को चाहिए कि उपवास के पहले दिन कम भोजन करें। रात्रि में ब्रह्मचर्य का पालन करें।
व्रत के दिन स्नानादि नित्यकर्म करके सूर्यादि सभी देव दिशाओं को नमस्कार करके पूर्व या उत्तर मुख बैठें।
भगवान श्रीकृष्ण को वैजयंती के पुष्प अधिक प्रिय है, अतः जहां तक बन पडे़ वैजयंती के पुष्प अर्पित करें और पंचगंध लेकर व्रत का संकल्प करें।
कृष्णजी की मूर्ति को गंगा जल से स्नान कराएं। फिर दूध, दही, घी, शक्कर, शहद, केसर के घोल से स्नान कराकर फिर शुद्ध जल से स्नान कराएं। फिर सुन्दर वस्त्र पहनाएं। रात्रि बारह बजे भोग लगाकर पूजन करें व फिर श्रीकृष्णजी की आरती उतारें।
कैसे मनाएं कृष्ण जन्माष्टमी पर्व
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भारतीय पौराणिक ग्रंथों के अनुसार कृष्ण सभी दृष्टि से पूर्णावतार हैं। आध्यात्मिक, नैतिक या दूसरी किसी भी दृष्टि से देखेंगे तो मालूम होगा कि कृष्ण जैसा समाज उद्धारक दूसरा कोई पैदा हुआ ही नहीं है।
जब-जब भी धर्म का पतन हुआ है और धरती पर असुरों के अत्याचार बढ़े हैं तब-तब भगवान ने पृथ्वी पर अवतार लेकर सत्य और धर्म की स्थापना की है। भाद्रपद माह की कृष्ण पक्ष की अष्टमी की मध्यरात्रि को अत्याचारी कंस का विनाश करने के लिए मथुरा में भगवान श्रीकृष्ण ने अवतार लिया था।
ऐसे भगवान कृष्ण के व्रत-पूजन से संबंधित जानकारी प्रस्तुत है :-
व्रत-पूजन कैसे करें :
- उपवास की पूर्व रात्रि को हल्का भोजन करें और ब्रह्मचर्य का पालन करें।
- उपवास के दिन प्रातःकाल स्नानादि नित्यकर्मों से निवृत्त हो जाएं। पश्चात सूर्य, सोम, यम, काल, संधि, भूत, पवन, दिक्पति, भूमि, आकाश, खेचर, अमर और ब्रह्मादि को नमस्कार कर पूर्व या उत्तर मुख बैठें।
- इसके बाद जल, फल, कुश और गंध लेकर संकल्प करें :
ममखिलपापप्रशमनपूर्वक सर्वाभीष्ट सिद्धये
श्रीकृष्ण जन्माष्टमी व्रतमहं करिष्ये॥
अब मध्याह्न के समय काले तिलों के जल से स्नान कर देवकीजी के लिए 'सूतिकागृह' नियत करें।
- तत्पश्चात भगवान श्रीकृष्ण की मूर्ति या चित्र स्थापित करें।
- मूर्ति में बालक श्रीकृष्ण को स्तनपान कराती हुई देवकी हों और लक्ष्मीजी उनके चरण स्पर्श किए हों अथवा ऐसे भाव हो।
- इसके बाद विधि-विधान से पूजन करें।
पूजन में देवकी, वासुदेव, बलदेव, नंद, यशोदा और लक्ष्मी इन सबका नाम क्रमशः निर्दिष्ट करना चाहिए।
फिर निम्न मंत्र से पुष्पांजलि अर्पण करें :-
'प्रणमे देव जननी त्वया जातस्तु वामनः।
वसुदेवात तथा कृष्णो नमस्तुभ्यं नमो नमः।
सुपुत्रार्घ्यं प्रदत्तं में गृहाणेमं नमोऽस्तुते।'
अंत में रतजगा रखकर भजन-कीर्तन करें। साथ ही प्रसाद वितरण करके कृष्ण जन्माष्टमी पर्व मनाएं।
इस वर्ष 17 अगस्त, रविवार एवं 18 अगस्त, सोमवार को श्रीकृष्ण जन्माष्टमी मनाई जाएगी। 17 अगस्त को सूर्य संक्रांति (सूर्य का सिंह राशि में प्रवेश) तथा 18 अगस्त को रोहिणी नक्षत्र होने से दोनों दिनों का महत्व है। सकाम मंत्रों का प्रयोग निम्नलिखित है : -
(1) यदि कोई बड़ी आपदा हो और कोई मार्ग न मिल रहा हो तो यथाशक्ति निम्न मंत्र का जाप करें : -
मंत्र - 'श्रीकृष्ण:शरणं मम्।'
(2) शांति तथा मोक्ष पाने के लिए निम्न मंत्र है -
मंत्र - 'ॐ हृषिकेशाय नम:'।
(3) शत्रु शांति के लिए -
मंत्र - 'क्लीं हृषिकेशाय नम:'।
(4) मोक्ष पाने के लिए तथा भक्ति वैराग्य के लिए -
मंत्र - 'ॐ नमो भगवते वासुदेवाय'।
(5) सौभाग्य वृद्धि तथा ऐश्वर्य प्राप्ति तथा क्लेश निवारण के लिए निम्न मंत्र जपें -
मंत्र - 'ॐ ऐं श्री क्लीं प्राण वल्लभाय सौ: सौभाग्यदाय श्री कृष्णाय स्वाहा'।
(6) संतान प्राप्ति के लिए सबसे ज्यादा प्रचलित तथा अमोघ मंत्र निम्न है -
मंत्र - 'ॐ देवकीसुत गोविन्द वासुदेव जगत्पते'।
देहि में तनयं कृष्ण त्वामहं शरणं गत:।।'
(7) निम्न मंत्र कल्पतरु के समान है। जिसका मानसिक जाप हमेशा कर सकते हैं।
मंत्र - 'ॐ नमो नारायणाय'
(8) कैसी भी समस्या को दूर करने हेतु निम्न पाठ किया जाता है।
मंत्र - गजेन्द्र मोक्ष के 108 पाठ।
* राम, कृष्ण, विष्णु के मंत्र का जाप तुलसी की माला से ही करें तथा पीला या लाल आसन मोक्ष के लिए कुश-आसन का प्रयोग कर सकते हैं।
* पूर्वाभिमुख या उत्तराभिमुख होकर सामने भगवान का चित्र, घी का दीपक, धूप तथा नैवेद्यादि लगाकर जप करें। इति:।
वास्तु में वर्णित है हर कामना के खास गणपति
घर में सुख-शांति और रिद्धि-सिद्धि के लिए गणेश जी की स्थापना की जाती है। अगर यह स्थापना वास्तु के अनुसार की जाए तो इसका फल और भी अधिक हो जाता है। जानिए वास्तु शास्त्र के अनुसार कैसे हो भगवान गणेश
वास्तु में गणपति की मूर्ति एक, दो, तीन, चार और पांच सिरों वाली पाई जाती है। इसी तरह गणपति के 3 दांत पाए जाते हैं। सामान्यत: 2 आंखें पाई जाती हैं, किंतु तंत्र मार्ग संबंधी मूर्तियों में तीसरा नेत्र भी देखा गया है।
भगवान गणेश की मूर्तियां 2, 4, 8 और 16 भुजाओं वाली भी पाई जाती हैं। 14 प्रकार की महाविद्याओं के आधार पर 12 प्रकार की गणपति प्रतिमाओं के निर्माण से वास्तु जगत में तहलका मच गया है।
* संतान गणपति- भगवान गणपति के 1008 नामों में से संतान गणपति की प्रतिमा उस घर में स्थापित करनी चाहिए जिनके घर में संतान नहीं हो रही हो। वे लोग संतान गणपति की विशिष्ट मंत्र पूरित प्रतिमा द्वार पर लगाएं जिसका प्रतिफल सकारात्मक होता है।
* विघ्नहर्ता गणपति- विघ्नहर्ता भगवान गणपति की प्रतिमा उस घर में स्थापित करनी चाहिए, जिस घर में कलह, विघ्न, अशांति, क्लेश, तनाव, मानसिक संताप आदि दुर्गुण होते हैं। पति-पत्नी में मनमुटाव, बच्चों में अशांति का दोष पाया जाता है। ऐसे घर में प्रवेश द्वार पर मूर्ति स्थापित करनी चाहिए।
* विद्या प्रदायक गणपति- बच्चों में पढ़ाई के प्रति दिलचस्पी पैदा करने के लिए गृहस्वामी को विद्या प्रदायक गणपति अपने घर के प्रवेश द्वार पर स्थापित करना चाहिए।
* विवाह विनायक- गणपति के इस स्वरूप का आह्वान उन घरों में विधि-विधानपूर्वक होता है, जिन घरों में बच्चों के विवाह जल्द तय नहीं होते।
* चिंतानाशक गणपति- जिन घरों में तनाव व चिंता बनी रहती है, ऐसे घरों में चिंतानाशक गणपति की प्रतिमा को 'चिंतामणि चर्वणलालसाय नम:' जैसे मंत्रों का सम्पुट कराकर स्थापित करना चाहिए।
* धनदायक गणपति- आज हर व्यक्ति दौलतमंद होना चाहता है इसलिए प्राय: सभी घरों में गणपति के इस स्वरूप वाली प्रतिमा को मंत्रों से सम्पुट करके स्थापित किया जाता है ताकि उन घरों में दरिद्रता का लोप हो, सुख-समृद्धि व शांति का वातावरण कायम हो सके।
* सिद्धिनायक गणपति- कार्य में सफलता व साधनों की पूर्ति के लिए सिद्धिनायक गणपति को घर में लाना चाहिए।
* सोपारी गणपति- आध्यात्मिक ज्ञानार्जन हेतु सोपारी गणपति की आराधना करनी चाहिए।
* शत्रुहंता गणपति- शत्रुओं का नाश करने के लिए शत्रुहंता गणपति की आराधना करना चाहिए।
* आनंददायक गणपति- परिवार में आनंद, खुशी, उत्साह व सुख के लिए आनंददायक गणपति की प्रतिमा को शुभ मुहूर्त में घर में स्थापित करना चाहिए
विजय सिद्धि गणपति- मुकदमे में विजय, शत्रु का नाश करने, पड़ोसी को शांत करने के उद्देश्य से लोग अपने घरों में 'विजय स्थिराय नम:' जैसे मंत्र वाले बाबा गणपति की प्रतिमा के इस स्वरूप को स्थापित करते हैं।
* ऋणमोचन गणपति- कोई पुराना ऋण, जिसे चुकता करने की स्थिति में न हो, तो ऋण मोचन गणपति घर में लगाना चाहिए।
रोगनाशक गणपति- कोई पुराना रोग हो, जो दवा से ठीक न होता है, उन घरों में रोगनाशक गणपति की आराधना करनी चाहिए।
* नेतृत्व शक्ति विकासक गणपति- राजनीतिक परिवारों में उच्च पद प्रतिष्ठा के लिए लोग गणपति के इस स्वरूप की आराधना प्राय: इन मंत्रों से करते हैं- 'गणध्याक्षाय नम:, गणनायकाय नम: प्रथम पूजिताय नम:।'
Havan method
Ganesha Chant these names -Ganesh Namvli -108
भगवान श्रीकृष्ण जन्माष्टमी : कैसे करें सरल पूजन
Krishn_bhagwan
भगवान श्रीकृष्ण का जन्म अष्टमी तिथि, रोहिणी नक्षत्र, वृषभ राशि, भाद्रपद कृष्ण अष्टमी, बुधवार, रोहिणी नक्षत्र एवं वृष के चन्द्रमाकालीन अर्धरात्रि के समय हुआ था।
ऋषियों के मतानुसार सप्तमी युक्त अष्टमी ही व्रत, पूजन आदि हेतु ग्रहण करनी चाहिए। वैष्णव संप्रदाय के अधिकांश लोग उदयकालिक नवमी युत श्रीकृष्ण जन्माष्टमी को ग्रहण करते हैं।
भगवान श्रीकृष्ण का जन्मदिन बडे़ ही धूमधाम से मनाया जाता है।
इस दिन व्रत करनेवाले को चाहिए कि उपवास के पहले दिन कम भोजन करें। रात्रि में ब्रह्मचर्य का पालन करें।
व्रत के दिन स्नानादि नित्यकर्म करके सूर्यादि सभी देव दिशाओं को नमस्कार करके पूर्व या उत्तर मुख बैठें।
भगवान श्रीकृष्ण को वैजयंती के पुष्प अधिक प्रिय है, अतः जहां तक बन पडे़ वैजयंती के पुष्प अर्पित करें और पंचगंध लेकर व्रत का संकल्प करें।
कृष्णजी की मूर्ति को गंगा जल से स्नान कराएं। फिर दूध, दही, घी, शक्कर, शहद, केसर के घोल से स्नान कराकर फिर शुद्ध जल से स्नान कराएं। फिर सुन्दर वस्त्र पहनाएं। रात्रि बारह बजे भोग लगाकर पूजन करें व फिर श्रीकृष्णजी की आरती उतारें।
कैसे मनाएं कृष्ण जन्माष्टमी पर्व
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भारतीय पौराणिक ग्रंथों के अनुसार कृष्ण सभी दृष्टि से पूर्णावतार हैं। आध्यात्मिक, नैतिक या दूसरी किसी भी दृष्टि से देखेंगे तो मालूम होगा कि कृष्ण जैसा समाज उद्धारक दूसरा कोई पैदा हुआ ही नहीं है।
जब-जब भी धर्म का पतन हुआ है और धरती पर असुरों के अत्याचार बढ़े हैं तब-तब भगवान ने पृथ्वी पर अवतार लेकर सत्य और धर्म की स्थापना की है। भाद्रपद माह की कृष्ण पक्ष की अष्टमी की मध्यरात्रि को अत्याचारी कंस का विनाश करने के लिए मथुरा में भगवान श्रीकृष्ण ने अवतार लिया था।
ऐसे भगवान कृष्ण के व्रत-पूजन से संबंधित जानकारी प्रस्तुत है :-
व्रत-पूजन कैसे करें :
- उपवास की पूर्व रात्रि को हल्का भोजन करें और ब्रह्मचर्य का पालन करें।
- उपवास के दिन प्रातःकाल स्नानादि नित्यकर्मों से निवृत्त हो जाएं। पश्चात सूर्य, सोम, यम, काल, संधि, भूत, पवन, दिक्पति, भूमि, आकाश, खेचर, अमर और ब्रह्मादि को नमस्कार कर पूर्व या उत्तर मुख बैठें।
- इसके बाद जल, फल, कुश और गंध लेकर संकल्प करें :
ममखिलपापप्रशमनपूर्वक सर्वाभीष्ट सिद्धये
श्रीकृष्ण जन्माष्टमी व्रतमहं करिष्ये॥
अब मध्याह्न के समय काले तिलों के जल से स्नान कर देवकीजी के लिए 'सूतिकागृह' नियत करें।
- तत्पश्चात भगवान श्रीकृष्ण की मूर्ति या चित्र स्थापित करें।
- मूर्ति में बालक श्रीकृष्ण को स्तनपान कराती हुई देवकी हों और लक्ष्मीजी उनके चरण स्पर्श किए हों अथवा ऐसे भाव हो।
- इसके बाद विधि-विधान से पूजन करें।
पूजन में देवकी, वासुदेव, बलदेव, नंद, यशोदा और लक्ष्मी इन सबका नाम क्रमशः निर्दिष्ट करना चाहिए।
फिर निम्न मंत्र से पुष्पांजलि अर्पण करें :-
'प्रणमे देव जननी त्वया जातस्तु वामनः।
वसुदेवात तथा कृष्णो नमस्तुभ्यं नमो नमः।
सुपुत्रार्घ्यं प्रदत्तं में गृहाणेमं नमोऽस्तुते।'
अंत में रतजगा रखकर भजन-कीर्तन करें। साथ ही प्रसाद वितरण करके कृष्ण जन्माष्टमी पर्व मनाएं।
इस वर्ष 17 अगस्त, रविवार एवं 18 अगस्त, सोमवार को श्रीकृष्ण जन्माष्टमी मनाई जाएगी। 17 अगस्त को सूर्य संक्रांति (सूर्य का सिंह राशि में प्रवेश) तथा 18 अगस्त को रोहिणी नक्षत्र होने से दोनों दिनों का महत्व है। सकाम मंत्रों का प्रयोग निम्नलिखित है : -
(1) यदि कोई बड़ी आपदा हो और कोई मार्ग न मिल रहा हो तो यथाशक्ति निम्न मंत्र का जाप करें : -
मंत्र - 'श्रीकृष्ण:शरणं मम्।'
(2) शांति तथा मोक्ष पाने के लिए निम्न मंत्र है -
मंत्र - 'ॐ हृषिकेशाय नम:'।
(3) शत्रु शांति के लिए -
मंत्र - 'क्लीं हृषिकेशाय नम:'।
(4) मोक्ष पाने के लिए तथा भक्ति वैराग्य के लिए -
मंत्र - 'ॐ नमो भगवते वासुदेवाय'।
(5) सौभाग्य वृद्धि तथा ऐश्वर्य प्राप्ति तथा क्लेश निवारण के लिए निम्न मंत्र जपें -
मंत्र - 'ॐ ऐं श्री क्लीं प्राण वल्लभाय सौ: सौभाग्यदाय श्री कृष्णाय स्वाहा'।
(6) संतान प्राप्ति के लिए सबसे ज्यादा प्रचलित तथा अमोघ मंत्र निम्न है -
मंत्र - 'ॐ देवकीसुत गोविन्द वासुदेव जगत्पते'।
देहि में तनयं कृष्ण त्वामहं शरणं गत:।।'
(7) निम्न मंत्र कल्पतरु के समान है। जिसका मानसिक जाप हमेशा कर सकते हैं।
मंत्र - 'ॐ नमो नारायणाय'
(8) कैसी भी समस्या को दूर करने हेतु निम्न पाठ किया जाता है।
मंत्र - गजेन्द्र मोक्ष के 108 पाठ।
* राम, कृष्ण, विष्णु के मंत्र का जाप तुलसी की माला से ही करें तथा पीला या लाल आसन मोक्ष के लिए कुश-आसन का प्रयोग कर सकते हैं।
* पूर्वाभिमुख या उत्तराभिमुख होकर सामने भगवान का चित्र, घी का दीपक, धूप तथा नैवेद्यादि लगाकर जप करें। इति:।
2 comments:
Nice Ganesh pooja details
So naesa
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