ज्योतिषी सलाह :आज हम कुंडली विश्लेषण में यह जानने की कोशिश करेंगे कि हमें रोग होने की संभावना है या नहीं इसके लिए हमें कुंडली में छठा भाव को विशेषकर देखना होता है
इसके साथ-साथ हमें लग्न भी देखना होता है तथा कुंडली का लग्न भाव तथा लग्नेश का विचार करना होता है ।
इसके अतिरिक्त छठे आठवें भाव में भाव तथा उनके स्वामी एवं इन भाव में स्थित ग्रह की उपस्थिति एवं दृष्टि आदि का विचार भी करना चाहिए ।हम जातक की कुंडली में कुंडली में लग्न का लग्नेश को ,छठे भाव को छठे भाव के स्वामी को और 6 8 12 भाव तथा इनके स्वामी स्थित ग्रहों आदि की स्थिति देखकर हम जातक को होने वाले संभावित रोग के बारे में बता सकते हैं। इन रोगों का होने का समय ग्रह की महादशा अंतर्दशा तथा गोचर का अध्ययन करके बता सकते हैं ।
लंबी अवधि के रोग ग्रह की महादशा अंतर्दशा में होती हैं तथा अल्पावधि वाले रोग प्रत्यंतर दशा एवं सूक्ष्म दशा में होती है।
रोगों का आरंभ संबतधी ग्रह की दशा अंतर्दशा में ,अष्टमेश की दशा अंतर्दशा में, द्वादशेश की दशा अंतर्दशा में ,मारकेश की दशा अंतर्दशा में एवं रोग कारक ग्रहो की दशा अंतर्दशा में होता है ।
ग्रह अपने कारक तत्व से संबंधित रोग देता है ।
जैसे कि सूर्य मिर्गी, हृदय रोग ,नेत्ररोग आदि का कारक है ।
चंद्र ग्रह , रक्तदोष ,मनोरोग आदि का कारक है ।
मंगल ग्रह, नेत्रों ,खुजली ,अंग-भंग, रक्तदोष आदि का कारक है ।बुद्ध ग्रह ,मतिभ्रम ,वाणी दोष ,मनोरोग ,त्वचारोग आदि का कारक है।
गुरु ग्रह पीलिया ,लीवर के रोग ,अपेंडिसाइटिस ,रसोली, आदि का कारक है।
शुक्र ग्रह पोस्टेड ,गुप्त रोग, आदि का कारक है।
शनि ग्रह वात , पैर में दर्द, गठिया , लगड़ा पन ,लकवा, घुटने के जोड़ों का दर्द और स्नायु मंडल के रोग का कारक ।
राहु भी हिर्दय रोग, आदि का कारक है ।
केतु ,सुस्ती, अचानक चोट लगना, घाव होना ,चमरोग होना, एलर्जी होना ,इन सब का कारक है।
इस तरह से हमने जाना अगर जो ग्रह ऊपर बताए हुए भावों में प्रभावित होंगे उस तरह का रोग प्रदान करेंगे।
इस तरह हम ज्योतिषी से अपनी कुंडली दिखाकर संभावित रोगों का पता लगाकर , उन ग्रहों का उचित उपाय करके, उस रोग की संभावना को कम करने का प्रयास कर सकते हैं।
इसके लिए संबंधित ग्रह का जप ओर दान करना चाहिए।
ग्रहों के अरिष्ठ के निवारण के लिए पूजा-पाठ जप तप, दान पुण्य और अनुष्ठान किए जाने चाहिए ।
इससे हम कुछ हद तक रोगों में कमी ला सकते हैं ।
इसके लिए अपनी कुंडली का विश्लेषण ज्योतिषी से करवा सकते हैं ।धन्यवाद।
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लंबी अवधि के रोग ग्रह की महादशा अंतर्दशा में होती हैं तथा अल्पावधि वाले रोग प्रत्यंतर दशा एवं सूक्ष्म दशा में होती है।
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जैसे कि सूर्य मिर्गी, हृदय रोग ,नेत्ररोग आदि का कारक है ।
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शनि ग्रह वात , पैर में दर्द, गठिया , लगड़ा पन ,लकवा, घुटने के जोड़ों का दर्द और स्नायु मंडल के रोग का कारक ।
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