कुंडली से देखे भवन सुख :
जन्म कुण्डली का चौथा भाव भूमि व भवन का है।
चौथा भाव।
चौथा भाव की राशि।
( चतुर्थेश )चौथा भाव का स्वामी। चौथा भाव में स्थित ग्रह।चतुर्थेश पर दृष्टि।
भूमि का ग्रह मंगल है।
कारक, अकारक एवं तटस्थ ग्रह।
मैत्री व शत्रुता।
चौथा भाव पर ग्रहो का प्रभाव :चौथा भाव में बलवान शुभ ग्रह गुरु ,शुक्र ,बुध , चन्द्र ,स्व उच्च राशि मे हो तथा लग्न से केन्द्र ,त्रिकोण ,शुभ दृष्ट हो , तो ही भवन सुख अच्छा होता है | शनि मंगल पाप ग्रह भी यदि चौथा भाव में स्व ,मित्र ,उच्च राशि के होने पर भी भवन सुख अच्छा होता है। चौथा भाव ,चतुर्थेश तथा कारक तीनों जन्मकुंडली में बलवान होने से भवन सुख अच्छा होता है।
तो ऐसे व्यक्ति को उत्तम सुख-सुविधाओं ये युक्त भवन प्राप्त होता है।
जन्मकुण्डली के चौथे भाव का स्वामी (चतुर्थेश), पहले (लग्न) भाव में हो और पहले (लग्न) भाव का स्वामी (लग्नेश) चौथे भाव में हो तो भी ऐसा व्यक्ति को अपना घर(भवन) बनाता है।भवन सुख मे ,बाधा के कारण ये है। चौथा भाव ,चतुर्थेश तथा कारक यदि दूषित हो तो अशुभ फल देते है।
ऊपर बताये गये ग्रह निर्बल पाप ग्रह अस्त ,शत्रु –नीच राशि में लग्न से 6,8 12 वें भाव में स्थित हों , तो भवन सुख मे बाधा आती है |
लग्नेश बलों में कमजोर, पीड़ित, नीच, अस्त, पाप मध्य, 6,8,12वें भाव में ,तो भी बाधा आती है .
चतुर्थांश कुण्डली या D-४ (चार्ट )कुण्डली। चतुर्थांश कुण्डली का भी आंकलन भवन सुख ,भूमि, जमीन के लिए करना चाहिये .
बाधक ग्रहो को जानकर उनका उपाय करे।
दान ,मंत्रो का जाप,रत्न ,आदि के द्यारा।
जन्म कुण्डली का चौथा भाव भूमि व भवन का है।
चौथा भाव।
चौथा भाव की राशि।
( चतुर्थेश )चौथा भाव का स्वामी। चौथा भाव में स्थित ग्रह।चतुर्थेश पर दृष्टि।
भूमि का ग्रह मंगल है।
कारक, अकारक एवं तटस्थ ग्रह।
मैत्री व शत्रुता।
चौथा भाव पर ग्रहो का प्रभाव :चौथा भाव में बलवान शुभ ग्रह गुरु ,शुक्र ,बुध , चन्द्र ,स्व उच्च राशि मे हो तथा लग्न से केन्द्र ,त्रिकोण ,शुभ दृष्ट हो , तो ही भवन सुख अच्छा होता है | शनि मंगल पाप ग्रह भी यदि चौथा भाव में स्व ,मित्र ,उच्च राशि के होने पर भी भवन सुख अच्छा होता है। चौथा भाव ,चतुर्थेश तथा कारक तीनों जन्मकुंडली में बलवान होने से भवन सुख अच्छा होता है।
तो ऐसे व्यक्ति को उत्तम सुख-सुविधाओं ये युक्त भवन प्राप्त होता है।
जन्मकुण्डली के चौथे भाव का स्वामी (चतुर्थेश), पहले (लग्न) भाव में हो और पहले (लग्न) भाव का स्वामी (लग्नेश) चौथे भाव में हो तो भी ऐसा व्यक्ति को अपना घर(भवन) बनाता है।भवन सुख मे ,बाधा के कारण ये है। चौथा भाव ,चतुर्थेश तथा कारक यदि दूषित हो तो अशुभ फल देते है।
ऊपर बताये गये ग्रह निर्बल पाप ग्रह अस्त ,शत्रु –नीच राशि में लग्न से 6,8 12 वें भाव में स्थित हों , तो भवन सुख मे बाधा आती है |
लग्नेश बलों में कमजोर, पीड़ित, नीच, अस्त, पाप मध्य, 6,8,12वें भाव में ,तो भी बाधा आती है .
चतुर्थांश कुण्डली या D-४ (चार्ट )कुण्डली। चतुर्थांश कुण्डली का भी आंकलन भवन सुख ,भूमि, जमीन के लिए करना चाहिये .
बाधक ग्रहो को जानकर उनका उपाय करे।
दान ,मंत्रो का जाप,रत्न ,आदि के द्यारा।
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