Sunday, September 21, 2014

ज्योतिष : कुंडली से जाने :संतान प्राप्ति का समय :निःसंतान योग :संतान बाधा दूर करने के सरल उपाय: Astrology:Time of receipt children by Horoscope: obstacle to overcome by simple upay:

  ज्योतिषीय विश्लेषण के लिए हमारे शास्त्रों मे कई  सूत्र दिए हैं।
 कुछ प्रमुख सूत्र इस प्रकार से  हैं।


ज्योतिषीय नियम हैं जो घटना के समय बताने  में सहायक होते हैं .
संतान प्राप्ति  का समय :
लग्न और लग्नेश को देखा  जाता  है।
घटना का संबंध किस भाव से है
भाव का स्वामी कौन  है ।
भाव का कारक ग्रह कौन है। 
भाव में कौन कौन से ग्रह हैं। 
भाव पर किस  ग्रह की दृष्टि। 
कौन से ग्रह महादशा ,अंतर्दशा, प्रत्यंतर्दशा, सूक्ष्म एवं प्राण दशा चल रही है।
भाव को प्रभावित करने वाले ग्रहों की गोचर स्थिति भी देखना चाहिये। 
 इन सभी का अध्ययन करने   से किसी भी घटना का समय जाना जा सकता है।
 संतान प्राप्ति के समय को जानने के लिए पंचम भाव, पंचमेश अर्थात पंचम भाव का स्वामी, पंचम कारक गुरु, पंचमेश, पंचम भाव में स्थित ग्रह और पंचम भाव ,पंचमेश पर दृष्टियों पर ध्यान देना चाहिए।   जातक का विवाह हो चुका हो और संतान अभी तक नहीं हुई हो , संतान का समय निकाला जा सकता है। 
पंचम भाव जिन शुभ ग्रहों से प्रभावित हो उन ग्रहों की दशा-अंतर्दशा और गोचर के शुभ रहते संतान की प्राप्ति होती है। 
गोचर में जब ग्रह पंचम भाव पर या पंचमेश पर या पंचम भाव में बैठे ग्रहों के भावों पर गोचर करता है तब संतान सुख की प्राप्ति का समय होता है।यदि गुरु गोचरवश पंचम, एकादश, नवम या लग्न में भ्रमण करे तो भी संतान लाभ की संभावना होती है। जब गोचरवश लग्नेश, पंचमेश तथा सप्तमेश एक ही राशि में भ्रमण करे तो संतान लाभ होता है।  
  संतान कब (साधारण योग): पंचमेश यदि पंचम भाव में स्थित हो या लग्नेश के निकट हो, तो विवाह के पश्चात् संतान शीघ्र होती है दूरस्थ हो तो मध्यावस्था में, अति दूर हो तो वृद्धावस्था में संतान प्राप्ति होती है। यदि पंचमेश केंद्र में हो तो यौवन के आरंभ में, पणफर में हो तो युवावस्था में और आपोक्लिम में हो तो अधिक अवस्था में संतान प्राप्ति होती है।
 पुत्र और पुत्री प्राप्ति का समय कैसे जानें? 
  संतान प्राप्ति के समय के निर्धारण में यह भी जाना जा सकता है कि पुत्र की प्राप्ति होगी या पुत्री की। यह ग्रह महादशा, अंतर्दशा और गोचर पर निर्भर करता है। यदि पंचम भाव को प्रभावित करने वाले ग्रह पुरुष कारक हों तो संतान पुत्र और यदि स्त्री कारक हों तो पुत्री होगी।पुरुष ग्रह की महादशा तथा पुरुष ग्रह की ही अंतर्दशा चल रही हो एवं कुंडली में गुरु की स्थिति अच्छी हो तो निश्चय ही पुत्र की प्राप्ति होती है। विपरीत स्थितियों में कन्या जन्म की संभावनाएं होती हैं।

जन्म कुंडली में संतान योग जन्म कुंडली में संतान विचारने के लिए पंचम भाव का अहम रोल होता है। पंचम भाव से संतान का विचार करना चाहिए। दूसरे संतान का विचार करना हो तो सप्तम भाव से करना चाहिए। तीसरी संतान के बारे में जानना हो तो अपनी जन्म कुंडली के भाग्य स्थान से विचार करना चाहिए भाग्य स्थान यानि नवम भाव से करें।

१   पंचम भाव का स्वामी स्वग्रही हो
२.
पंचम भाव पर पाप ग्रहों की दॄष्टि ना होकर शुभ ग्रहों की दॄष्टि हो अथवा स्वयं चतु सप्तम भाव को देखता हो.
३.
पंचम भाव का स्वामी कोई नीच ग्रह ना हो यदि  भाव पंचम में कोई उच्च ग्रह हो तो अति सुंदर योग होता है.
४.
पंचम भाव में कोई पाप ग्रह ना होकर शुभ ग्रह विद्यमान हों और षष्ठेश या अष्टमेश की उपस्थिति  भाव पंचम में नही होनी चाहिये.
५.
पंचम भाव का स्वामी को षष्ठ, अष्टम एवम द्वादश भाव में नहीं होना चाहिये. पंचम भाव के स्वामी के साथ कोई पाप ग्रह भी नही होना चाहिये साथ ही स्वयं पंचम भाव का स्वामी नीच का नही होना चाहिये.
६.
पंचम भाव का स्वामी उच्च राशिगत होकर केंद्र त्रिकोण में हो.
पति एवम पत्नी दोनों की कुंडलियों का अध्ययन करना चाहिए | 
सप्तमांश लग्न का स्वामी जन्म कुंडली में :बलवान ,शुभ स्थान ,सप्तमांश लग्न भी शुभ ग्रहों से युक्त  |
 ८  एकादश भाव में शुभ ग्रह बलवान हो |
संतान सुख मे परेशानी के योग :
ऊपर बताये गये  ग्रह निर्बल पाप ग्रह अस्त ,शत्रु –नीच राशि  में लग्न से 6,8 12 वें भाव में स्थित हों , तो संतान प्राप्ति में बाधा आती है | 
पंचम भाव: राशि ( वृष ,सिंह कन्या ,वृश्चिक ) हो  तो कठिनता से संतान होती है |

निःसंतान योग
 पंचम भाव में क्रूर, पापी ग्रहों की मौज़ूदगी
पंचम भाव में बृहस्पति की मौजूदगी
पंचम भाव पर क्रूर, पापी ग्रहों की दृष्टि
पंचमेश का षष्ठम, अष्टम या द्वादश में जाना
पंचमेश की पापी, क्रूर ग्रहों से युति या दृष्टि संबंध
पंचम भाव, पंचमेश व संतान कारक बृहस्पति तीनों ही पीड़ित हों 
नवमांश कुण्डली में भी पंचमेश का शत्रु, नीच आदि राशियों में स्थित होना
पंचम भाव व पंचमेश को कोई भी शुभ ग्रह न देख रहे हों संतानहीनता की स्थिति बन जाती है।
 

 पुत्र या पुत्री :
सूर्य ,मंगल, गुरु पुरुष ग्रह हैं |
शुक्र ,चन्द्र स्त्री ग्रह हैं |
 बुध और शनि नपुंसक ग्रह हैं |
 संतान योग कारक पुरुष ग्रह होने पर पुत्र होता  है।
 संतान योग कारक स्त्री ग्रह होने पर पुत्री होती  है |
शनि और बुध  योग कारक हो  पुत्र व पुत्री होती  है|
ऊपर बताये गये  ग्रह निर्बल पाप ग्रह अस्त ,शत्रु –नीच राशि  में लग्न से 6,8 12 वें भाव में स्थित हों तो ,  पुत्र या पुत्रियों की हानि होगी |

 बाधक ग्रहों की क्रूर व पापी ग्रहों की किरण रश्मियों को पंचम भाव, पंचमेश तथा संतान कारक गुरु से हटाने के लिए रत्नों का उपयोग करना होता  है। 

संतान बाधा दूर करने के सरल  उपाय:
ॐ ग्रां ग्रीं ग्रौं गुरुवे नमः का जाप करें |
तर्जनी में गुरु रत्न पुखराज स्वर्ण में धारण  करें।
संतान गोपाल स्तोत्र का पाठ करे :
ॐ देवकीसुत गोविन्द वासुदेव जगत्पते देहि में तनयं कृष्ण त्वामहम शरणम गतः |

जाप ,हवन. तर्पण ,ब्राह्मणों को भोजन |
गायें की सेवा करे  |
गरीब बालक, बालिकाओं को, पढ़ाएं, लिखाएं, वस्त्र, कापी, पुस्तक, दान करे 
आम, बील, आंवले, नीम, पीपल के पौधे लगाना चाहिए ।गोपाल सहस्रनाम- हरिवंश पुराण   का पाठ करना चाहिए
क्रूर ग्रह का उपाय करें।
दूध   अंजीर, सफेद प्याज का मुरब्बा  सेवन करें।
भगवान शिव का पूजन करें।
बड़े का अनादर ना करे।
धार्मिक आचरण रखना चाहिए
गरीबों को  खाना खिलाएं, दान , करें।
अनाथालय में  दान दें।
कुता  को प्यार करे।
संतान दोष अथवा पितृ दोष का  उपाय करना चाहिए 
घर का वास्तुदोष का  उपाय करे। 

हरिवंश पुराण का पाठ या संतान गोपाल मंत्र का जाप कराये .बाधक   ग्रहो के उपाय करे। सोने  का उपयोग न करे।
ताबै का उपयोग  करे।ताबै के बर्तन का पानी पीये।
मास मदिरा का सेवन ना करे। 
अनुलोम विलोन ,कपालभाति करना चाहिए   । 
खासी सरदी का  उपाय  करे। 
जब पंचम भाव में का स्वामी सप्तम में तथा सप्तमेश सभी क्रूर ग्रह से युक्त हो तो वह स्त्री मां नहीं बन पाती।
 क्रूर ग्रह , बाधाकारक ग्रहों  का जाप ,दान ,हवन ,करने से संतान  की प्राप्ति हो सकती  है
सूर्य :
पितृ पीड़ा
पितृ शान्ति के लिए  पिंड दान |
हरिवंश पुराण का श्रवण करें |
रविवार को  गेंहु,गुड ,केसर ,लाल चन्दन ,लाल वस्त्र ,ताम्बा,दान करे  |
गायत्री जाप करे।
ताम्बे के पात्र में ,जल में , लाल चन्दन ,लाल पुष्प ड़ाल कर नित्य सूर्य को अर्घ्य  कराना
चाहियें  |
चन्द्र : माता का शाप  है। 

गायत्री का जाप करें |
मोती चांदी की अंगूठी में  अनामिका या कनिष्टिका अंगुली में धारण करें |
सोमवार के नमक रहित व्रत |
सोमवार को चावल ,चीनी ,आटा, श्वेत वस्त्र ,दूध दही ,नमक ,चांदी  का दान करें |
मंगल : भ्राता का शाप  . 

रामायण का पाठ करें | 
मूंगा  सोने या ताम्बे  की अंगूठी में अनामिका अंगुली में धारण करें |
मंगलवार के नमक रहित व्रत रखें
मंगलवार को गुड  ,लाल रंग का वस्त्र और फल ,ताम्बे का पात्र ,सिन्दूर , मसूर की दाल  का दान करें |
बुध : मामा का शाप  

विष्णुसहस्त्रनाम का पाठ करें |
पन्ना सोने या चांदी की अंगूठी में बुधवार को कनिष्टिका अंगुली में  |
बुधवार  के नमक रहित व्रत।
बुधवार को कर्पूर,घी, खांड, ,हरे  रंग का वस्त्र ,कांसे का पात्र ,साबुत मूंग  का दान करें |
बृहस्पति : गुरु ,ब्राह्मण का शाप. 
पुखराज सोने  गुरुवार को  तर्जनी अंगुली में  |
गुरूवार के नमक रहित व्रत। .
गुरूवार को घी, हल्दी, चने की दाल , पीत रंग का वस्त्र का दान करें | 

गुरु का सत्कार करें |
शुक्र :  स्त्री को कष्ट देना है।
गौ दान  
करें | 
ब्राह्मण दंपत्ति दान  करें |
हीरा
या (जरकन )प्लैटिनम या चांदी की अंगूठी शुक्रवार को मध्यमा अंगुली में धारण करें |
शुक्रवार  के नमक रहित व्रत। 
शुक्रवार को  आटा ,चावल दूध ,दही, मिश्री ,श्वेत चन्दन ,इत्र, श्वेत रंग का वस्त्र ,चांदी का दान करना 
चाहियें |
शनि : प्रेत बाधा है
रुद्राभिषेक करें | 

नीलम या   लाजवर्त मध्यमा अंगुली में धारण करें |
कील  का छल्ला पहने |
शनिवार के नमक रहित व्रत रखें |
शनिवार को काले उडद ,तिल ,तेल ,लोहा,काले जूते ,काला कम्बल , काले  रंग का वस्त्र का दान करें |
श्री हनुमान चालीसा का नित्य पाठ करना करे।

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